SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवेक-चूडामणि ततः शमश्चापि दमस्तितिक्षा न्यासः प्रसक्ताखिलकर्मणां भृशम् ॥७१॥ ततः श्रुतिस्तन्मननं सतत्त्व ___ध्यानं चिरं नित्यनिरन्तरं मुनेः। ततोऽविकल्पं परमेत्य विद्वा निहैव निर्वाणसुखं समृच्छति ॥७२॥ मोक्षका प्रथम हेतु अनित्य वस्तुओंमें अत्यन्त वैराग्य होना कहा है, तदनन्तर शम, दम, तितिक्षा और सम्पूर्ण आसक्तियुक्त कर्मोंका सर्वथा त्याग है। तदुपरान्त मुनिको श्रवण, मनन और चिरकालतक नित्य-निरन्तर आत्मतत्त्वका ध्यान करना चाहिये। तब वह विद्वान् परम निर्विकल्पावस्थाको प्राप्त होकर निर्वाणgoan qarai ApniHindi.com यद्बोद्धव्यं तवेदानीमात्मानात्मविवेचनम् । तदुच्यते मया सम्यक् श्रुत्वात्मन्यवधारय ॥७३॥ जो आत्मानात्मविवेक अब तुझे जानना चाहिये वह मैं समझाता हूँ, तू उसे भलीभाँति सुनकर अपने चित्तमें स्थिर कर । स्थूल शरीरका वर्णन मजास्थिमेदःपलरक्तचर्म वगाह्वयैर्धातुभिरेमिरन्वितम् । पादोरुवक्षोभुजपृष्ठमस्तक रजैरुपाङ्गरुपयुक्तमेतत् ॥७४॥ अहंममेति प्रथितं शरीरं मोहास्पदं स्थूलमितीर्यते बुधैः । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy