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________________ भारत की खोज व ही रहेगी और उसका चित्त हमेशा भौतिकवादी रहेगा. वह कौम कभी भी धार्मि क नहीं हो सकती और आध्यात्मिक भी नहीं हो सकती। लेकिन यह बड़ी उल्टी बातें मालम पडती हैं. क्योंकि हमको हमेशा यही सिखाया गया है कि धन कछ भी नहीं है लेकिन ध्यान रहे. धन कम है इसलिए लोगों को समझाना पड़ता है कि धन कछ भी नहीं है। इस समझाने में भी कि धन मिढ़ी है तच्छ है कछ भी नहीं है जो समझा ता है वह भी बताता है कि धन जरूर कछ है. नहीं तो समझाने की कोई जरूरत न हीं। हम कभी नहीं कहते लोगों से जाकर कि मिट्टी मिली है। हम यह कहते है कि सोना मिट्टी है, सोना मिट्टी नहीं होगा तभी कहते हैं नहीं तो नहीं कहते। कोई जरूरत न हीं है कहने की। हम कभी नहीं कहते कि कंकड़-पत्थर, कंकड़-पत्थर हैं। हम कहते हैं कि, हीरे-जवाहरात कंकड़-पत्थर हैं।' क्यों? यह हम किसको समझा रहे हैं? हम जो समझाते हैं ठीक उससे उल्टी हालत होगी इसलिए हम समझा रहे हैं नहीं तो स मझाने की जरूरत नहीं है। मेरी समझ यह है पांच हजार साल हो गए समझाते लोगों को, कौन धन से मुक्त हु आ है? हां, कुछ लोग मुक्त होते हैं। और वह वे ही लोग है जो किसी ना किसी अ र्थों में धन से गुजर जाते हैं। हां कुछ लोग और भी मुक्त होते हैं। लेकिन वह मुक्त होते दिखाई देते हैं, वह मुक्त नहीं हो पाते। वह धन से मुक्त होते ही नहीं, धन छो. ड देते हैं लेकिन मुक्त नहीं होते । वह हमेशा धन को पकड़े ही रहते हैं। नए-नए रू पों में पकड़े रहते हैं। मैं जयपुर में था। एक आदमी मेरे पास आया। और उसने कहा कि, 'फलां-फलां मुि न हैं। वहुत बड़े संन्यासी हैं आप उनसे मिलिएगा आपको बड़ी खुशी होगी।' मैंने कह [, 'आपने किस तराजू से पता लगाया कि वह बहुत बड़े मुनि हैं, कैसे तोला तुमने । क बहुत बड़े संन्यासी हैं। एक बड़े धनी आदमी को तोला जा सकता है कि बड़ा धन है कि धन के सिक्के नापे जा सकते हैं। एक आदमी को तोला जा सकता है कि व ह बहुत बड़े पद पर है। क्योंकि पद के सिक्के नापे जा सकते हैं।' मैंने कहा, 'तुमने कैसे पता लगाया कि बहुत बड़े संन्यासी हैं।' उसने कहा, 'पता, खुद जयपुर महाराज उनके चरण छूते हैं।' तो मैंने उससे कहा कि, 'भाई, ठीक से समझ लो, जयपूर महाराज बड़े हैं, वही मा प-दंड अगर जयपूर महाराज उनके चरण ना छूते हों संन्यासी के, संन्यसी छोटे हो ज एंगे। जयपूर महाराज क्यों बड़े हैं क्योंकि धन उनके पास ज्यादा है। तो धन ही संन्य सी को नाप रहा है। धन की ही तोल पर तराजू पर संन्यासी भी नापा जा रहा है। अगर गरीव का बेटा संन्यासी हो जाएं, कोई नहीं कहेगा त्यागी हैं लोग पूछेगे था क या जिसको छोड़ा। था ही नहीं कुछ, कुछ काम नहीं करना चाहता था काहिल है, सु स्त है, अनएमप्लाईड था, वेकार था। संन्यासी हो गया। लेकिन अमीर का वेटा संन्यासी हो जाएं लोग कहते हैं मान त्याग किया। इसलिए अ गर जैनों के, वौद्धों के ग्रंथ पढ़े तो उनमें लिखा हुआ मिलेगा कि इतने घोड़े थे महा Page 88 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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