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________________ भारत की खोज लेकिन भारत में बाहर की खोज ही पूरी नहीं हो पाई तो भीतर की खोज कैसे शुरू हो? रोटी ही नहीं मिल पाई, प्रार्थना कैसे शुरू हो? नहीं, हम कहेंगे गलत कहते हैं आप हम तो प्रार्थना करते हैं। लेकिन वह प्रार्थना भी रोटी के लिए होती है। वह प्र र्थना भी प्रार्थना नहीं है रोटी ही है। मंदिर में एक आदमी हाथ जोडे खडा है। खोलो उसके हृदय को और पूछो क्या मांग रहे हो? मांग रहा है कि लड़की की शादी न हीं हो रही कहीं शादी लगा दो। यह अध्यात्मवाद है। मांग रहा है कि लड़का वीमार है दवा के लिए पैसे चाहिए, हे भगवान! या तो पैसे दिलवा दो या तो फिर लड़के की बीमारी ठीक कर दो। यह अध्यात्मवाद है। मांग रहा है कि नौकरी नहीं लगती नौकरी लगवा दो। यह अध्यात्मवाद है। गरीब आदमी की प्रार्थना भी पदार्थ के लिए ही हो सकती है, परमात्मा के लिए कैसे होगी? वह अगर परमात्मा को भी मांग लेगा तो वह इसलिए कि पदार्थ मिल जाए , रोटी मिल जाए, रोटी मिल जाए। मैं आपसे कहता हूं कि पश्चिम भी अशांत है, पूरव भी। लेकिन पश्चिम की अशांति बहूत दूसरी है पूरव की अशांति से। पूरब की अशांति गरीव की अशांति है, गरीव की अशांति क्या सोचती है, क्या मांगती है? ग रीव की अशांति से मटीरिलिज्म पैदा होता है। भौतिकवाद पैदा होता है। अमीर की अशांति से आध्यात्मवाद पैदा होता है। हिंदुस्तान के तीर्थांकरों का इतिहास उठाकर देखें, जैनियां के चौबीस तीर्थांकर राजा ओं के लड़के हैं। हिंदूओं के भगवान सब राजाओं के लड़के हैं। हिंदुस्तान में गरीब क । एक भी वेटा अब तक तीर्थांकर और राजा, अवतार नहीं हो सका भगवान का। क यों? कुछ कारण हैं। वुद्ध के घर में सब कुछ है, महावीर के घर में सब कुछ है, अ और फिर भी शांति नहीं है तो भीतर की यात्रा शुरू हो गई। महावीर को एक गरीब के घर में रख दो, भूख में पैदा हों, नंगे पैदा हों फिर नंगे होने का खयाल कभी पैदा नहीं होगा। फिर यही खयाल पैदा होगा कि कपड़े कैसे मिल जाएं, मकान कैसे मिल जाएं, रोटी कैसे मिले, नौकरी कैसे मिले। धर्म समृद्ध जीवन से पैदा होता है। मेरे हिसाव में धर्म जो है समृद्धि की आखरी लर जरी है। जव समृद्ध होता है समाज तो धर्म के फूल खिलते हैं। गरीब समाज में नहीं , लेकिन गरीब समाज बड़ी तृप्तियां और कंसोलेशन खोजता है। वह यह कहता है, 'अरे! तो तुम भी तो अशांत हो, तुम्हारे पास हवाईजहाज हैं, रोकेट हैं, चांद पर ज [ रहे हो क्या फायदा है, तुम भी अशांत हो।' बड़ी राहत मिलती है मन को कि ह म भी अशांत हैं फिर क्या दिक्कत है? तुम भी अशांत हो, तुम्हारे यहां भी तो सब अशांति है तुम भी तो पूरव आते हो पूछने की शांत कैसे हो जाएं। तो फिर क्या ज रूरत है हमें। मैंने सुना है एक मित्र एक कहानी मुझे सुना रहे थे। वह कह रहे थे, एक स्टेशन पर हरिद्वार जाने के लिए ट्रेन खड़ी है सारे लोग चढ़ रहे हैं डिब्बों में। और हर आदमी यही चिल्ला रहा है कि जल्दी अंदर जाओ सामान चढ़ाओ, गाड़ी छूटने को है जगह घेरो स्थान बनाओ। पांच सात मित्र एक आदमी को घेरे खड़े है उसे खींच रहे हैं। Page 82 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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