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________________ भारत की खोज वह चोर तो वहुत घबरा गया उसकी तो सांस फूल गई कि क्या करे क्या ना करे। उस फकीर ने कहा, 'उस आले में रखे हुए दस रुपए उठा लो लेकिन वड़ा दु:ख मन को होता है कि इतनी रात तुम आए और सिर्फ दस रुपए।' उस चोर ने घबराहट में उसे कुछ होश नहीं है रुपए उठा लिए, जाने लगा तो उस फकीर ने कहा कि, ' कृपा कर सको और असुविधा ना हो तो एक रुपया मुझे उधार दे जाओ, बाद में लौ टा दूंगा क्योंकि सुबह से ही जरूरत पड़ेगी मुझे।' उसने जल्दी से एक रुपया नीचे रख दिया। दरवाजे से भागने लगा तो उस फकीर ने कहा, 'ठहरो. कम से कम दरवाजा तो अटका दो। और कम से कम धन्यवाद तो दे जाओ, रुपए तो कल खत्म हो जाएंगे। धन्यवाद वाद में भी काम पड़ सकता है। उस चोर की तो सब समझ के बाहर हो गया। चोर को चोर मिल जाए तो सब सम झ के भीतर होता है। चोर को साधु मिल जाए तो सब समझ के बाहर हो जाता है। चोर चोर को ही पहचान पाते हैं, और जो चोर साधु को भी पहचानते हैं समझ ले ना कि साधु भी चोर होगा नहीं तो पहचानने का मतलब नहीं। चोर चोर को ही पह चान सकता है साधु तो बहुत गड़बड़ हो जाएगा। उसके समझ के वाहर हो जाएगा। तो चोर जिन साधुओं को पूजते हैं तो समझ लेना कि उन दोनों के बीच कोई आंता रक संबंध हैं। अन्यथा यह पूजा नहीं चल सकती। साधु की पूजा बहुत मुश्किल है सा धु की हत्या की जा सकती है, पूजा नहीं की जा सकती। लेकिन हां अपने ही ढंग । का चोर हो कपड़े और तरह के पहने हो तो चल जाएगा। उस साधु ने कहा, 'धन्य वाद पीछे काम पड़ेगा, दरवाजा अटका पागल है। धन्यवाद देना सीख। चोर ने धवरा हट में धन्यवाद भी दिया, दरवाजा भी अटकाया और भाग गया। दो साल बाद वह चोर पकड़ा गया और चोरियों के भी जुर्म उसके ऊपर थे। यह चो री का भी पता चल गया अदालत को, तो उस साधु को बुलाया गया पूछने के लिए कि क्या इसने कभी तुम्हारे यहां चोरी की थी'? चोर डरा हुआ था क्योंकि साधु की इतनी उसके शब्द का इतना मूल्य था कि अगर वह कह दे कि हां यह यहां चो री करने आया था तो फिर सब प्रमाण व्यर्थ हैं। फिर चोरी सिद्ध ही हो गई चोर ड रा हुआ कप रहा है। साधु गया, जज ने पूछा, 'इसने कभी चोरी की है। उस साधु ने गौर से देखा 'चोरी! चोरी की बात ही अलग यह आदमी बहुत अदभूत है। एक रुपया इसका मुझे उधार देना है, दो साल से खीसे में रखकर घूम रहा हूं। इसका क ई पता नहीं।' 'यह रुपया ले। फिर मिला कि नहीं मिला यह तो अदालत की कृपा है कि तू मिल गया। यह रुपया संभाल अपना हम मुसीबत में पड़े हुए हैं कि रुपया कैसे लौटाएं।' जज ने कहा, 'कहां का रुपया यह कैसा मामला है। उस साधु ने कहा, 'नौ रुपए, दस रुपए मैंने इसे भेंट किए थे। भेंट के बदले में इसने धन्यवाद दे दिया था वह बात खत्म हो गई। एक रुपया इससे मैंने उधार लिया था, वह मुझे वापस लौटाना है औ र इसको आप चोर कहते हैं। यह चोर नहीं है, अगर यह चोर होता तो चोरी करने Page 80 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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