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________________ भारत की खोज दिए घर पर हाजिर हो जाए। वताए ना कि किस तारीख को आ रहे हैं कब आ र हे हैं। क्योंकि बता दिया तो घर वाले समझेंगे बहत कम उम्मीद है कि वह घर में ि मलें। इसीलिए अतिथि कहते हैं उसे । विना तिथि वताए आ कर खड़े हो गए हैं। भीतर कछ और है बाहर कछ और है। एक वेटा जिंदगी भर बाप को तकलीफ देता है, कष्ट देता है, सम्मान नहीं देता, आदर नहीं, प्रेम नहीं और मरते वक्त वैठ कर आंसू बहाता है। झूठ की भी कोई हद है। किसके लिए आंसू बहा रहे हो? उस बाप के लिए जिसको एक दफा खुशी का मौका नहीं दिया। फिर श्राद्ध करता है। बैठा है सिर मुढा कर उदास, दु:खी यह दु:ख कैसा है यह सच्चे आदमी का हो सकता है। और जिंदा था तब यह बाप तब। मैं मानता हूं जिन लोगों ने मरे हुए वाप के श्राद्ध किए हैं ज्यादती है यह खतरनाक लोग हैं यह पश्चाताप कर रहे हैं, इन्होंने बाप क ो जिंदगी में आदर नहीं दिया होगा। क्योंकि जिसे हमने जिंदगी में आदर दिया, उस को मरने के बाद आदर देने का ढोंग दिखाने की कोई जरूरत नहीं है। जिस दिन बेटे बाप को जीवन में आदर देंगे उसे श्राद्ध वराद की जरूरत नहीं हो जा एगी। सब बेईमान लोगों की इजाद है। मर जाने के बाद सारा पाखंड चल रहा है। और जिंदा आदमी के साथ दुर्व्यवहार चल रहा है। मरे हुए लोगों के साथ हम बड़ा सदव्यवहार करते हैं क्यों? कोई आदमी मर जाए अगर दुनिया में सदव्यवहार चाहना हो तो मरने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं है। अगर दुनिया में अच्छे सिद्ध होना ह तो मर जाना चाहिए। उसे सारी दुनिया कहती है बहुत अच्छा आदमी था। जिंदा में उस आदमी को किसी ने सदव्यवहार नहीं दिया। कोई आदर नहीं कोई प्रेम नहीं कोई मर गया और सब ठीक हो गया। यह क्या है, यह गिल्ट यह अपराध है हमारे चित्त में हम जिंदा आदमी के साथ जो नहीं कर पाए वह मरने पर हम प्रकट करते हैं दिखावा करते हैं। लेकिन कैसे पूछते हैं कैसे हम पहचानें, कोई पहचानने की तरकीब होगी, पहचानने की तरकीब सिर्फ इतनी ही होगी कि हम देखें हर क्षण एक-एक क्षण धोखा चल रह । है। ऐसा थोड़े ही है कि दिन के किसी खास समय में हम धोखा देते हैं हम चौबीस घंटे धोखे दे रहे हैं। चलते हैं तो कमजोर आदमी डरा हुआ आदमी ऐसे चलता है जैसे बहुत बहादूर हो। धोखा दे रहा है किसी को भी नहीं अपने को धोखा दे रहा ह गा। अंधेरी गली है और एक आदमी निकलता है सीटी बजाता हुआ। वह सीटी बज किर सारे मौहल्ले पर अपने को धोखा दे रहा है अंधेरे से मैं डर नहीं रहा देखो कि स खुशी से सीटी बजा रहा हूं। और सीटी सिर्फ डर में बजा रहा है, और कोई कार ण नहीं है। सिर्फ डरा हुआ था। और डर में सीटी बजाकर सैल्फ कौंफीडेंस पैदा करने की कोशिश कर रहा है। कि आत्म विश्वास आ जाए। हम तो सीटी बजा रहे हैं, हम कोई डरते नहीं हैं। यह कहां-कहां उसे जांच करने जाना पड़ेगा, उसे जीवन की समग्र क्रिया में, जीवन के प्रत्येक छोटे काम में जागरूक होकर देखना पड़ेगा मैं क्या कर रहा हूं वही जो मैं हूं। और मैं आपसे कहता हूं, अगर हिंसक हैं तो अहिंसक होने के ढोंग में मत पड़न Page 73 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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