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________________ भारत की खोज जीवन ही जाने योग्य हैं ताकी हम जीवन से ऊपर उठ सके जीवन में गहरे जा सके, जीवन भागने योग्य नहीं हैं। भागा हुआ आदमी जीवन से गहरे भी नहीं जाता ऊपर भी नहीं जाता। वहीं अटक जाता हैं जहां से भाग जाता हैं। मैं मित्र को कहा कछ भी करो यह वड़ा पुण्य कार्य तो मैंने कहा ले जाओ। वामुशकील वह राजी हुए फिर उन्होंने कहा फिर भी मैं इनको कैंटनमैंट ऐरिया में ले जा सकता है। वहां अंग्रेजी क फिल्म चलती हैं. वहां हिन्दी के देखने वाले नहीं होते और मेरी जाति के सब लोग बाजार में रहते हैं। वहां कोई जाता वाता नहीं, और वहां जाते भी हैं तो ऐसे लोग जाते हैं जो विगड़ चुके हैं। इनको मैं वहां ले जा सकता हूं। पर वह कहने लगे की वह संन्यासी अंग्रेजी नहीं जानते, वह कहने लगे मैं अंग्रेजी नहीं जानता हूं फिर भी मैं ने कहा कोई हर्ज नहीं फिल्म तो देख लेंगे आप। यह तो पता चल जाएगा की क्या हैं वह अंग्रेजी फिल्म ही देखने गए। लौट के मुझसे कहने लगे। मेरे मन का इतना वो झ उतर गया मैं भी कैसा पागल हूं। वहां तो कुछ भी न था लेकिन मैंने कहा यह ज न के ही जाना जा सकता हैं। यह बिना जाने नहीं जाना जा सकता। और किसी दू सरे के कहने से भी नहीं जाना जा सकता। अव तुम जा के किसी बच्चे को दीक्षा म त दे देना। उससे कहना की तू जान ले और जानने से ही जीवन में धीरे-धीरे फूल । खलता है जो संन्यास का। वह संन्यास भर पूरा नहीं होता। वह जीवन के रस और संगीत से ही आया हुआ होता हैं। तब वह संन्यास हंसता हुआ होता हैं, तव वह रो ता हुआ नहीं होता, तब वह संन्यास जीवंत होता है, लिविंग होता हैं, तब वह डेढ नहीं होता। भारत अपने बाहर के जीवन की कोई समस्या हल नहीं कर पाया और इसी लिए भ रित अपने भीतर के जीवन की भी कोई समस्या हल नहीं कर पाया हैं। क्योंकि जो बाहर की ही समस्याएं हल नहीं कर सकते वह भीतर की समस्याएं कैसे हल कर स केगें? वाहार की समस्याएं बहुत सरल हैं हम वहीं हार गए भीतर की समस्याएं बहु त जटिल हैं हम वहां कैसे जीतेंगे। जो समाज विज्ञान पैदा नहीं कर पाया मैं आप से कहना चाहता हूं। वह समाज धर्म भी पैदा नहीं कर सकता हैं क्योंकि धर्म तो पर्म विज्ञान हैं। वह तो सुपरिम साईंस है जो अभी पद्वार्थ के ही नियम नहीं खोज पाया वह परमात्मा के नियम नहीं खोज स कता है। जो अभी बाहर के ही जगत को नहीं समझ पाया है वह भीतर के जगत क ने भी नहीं समझ सकता है। पहले विज्ञान फिर धर्म पहले विज्ञान का जन्म हो तो ही एक विज्ञानिक धर्म का जन् म हो सकता है। अन्यथा धर्म एक प्लायन होगा, भागना होगा, बचाव होगा। समस्या ओं से भागना और तव धर्म एक जहर और अफीम का काम करता है। वह मार्कस ने गलत नहीं कहा है की धर्म अफीम का नशा है। वह है! यह धर्म अफीम का नशा हैं। लेकिन मार्कस गलत कहेगा अगर वह कहे की ऐसा धर्म हो ही नहीं सकता जो अफीम का नशा न हो। ऐसा धर्म हो सकता हैं लेकिन वह विज्ञानिक चिंतन से पैदा होता है वह विज्ञान की ही प्रकिया को अंतरजगत में लगाने से उपल्बध होता है। ि Page 21 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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