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भारत की खोज
डे। सुंदर कपड़े पहनते हैं अगर नंगे होते लंगोटी लगाते तो ख्याल आता, की आदमी ठीक है। बड़े-बड़े बाल रखते हैं आईने के सामने आधा-आधा घंटा बाल संवारते हैं एक बार गांधी जी रविंद्रनाथ के पास ठहरे हुए थे। दोनों घुमने जाते थे सांज को ि नाथ ने कहा दो छण ठहरें मैं थोड़े बाल सवार आऊं । गांधी के तो बरदाश के बा हर हो गया कोई कहे बाल संवार आऊं वाल सवारने की जरूरत है पहली तो बात बाल रखने की जरूरत नहीं। लेकिन रविंद्रनाथ से कुछ कह भी न सके एक दम से । रविंद्रनाथ भीतर चलेगए सोचा था जल्दी लोट आएंगे, लेकिन दस मिनट बीत गए हैं उनका कोई पता नहीं हैं वह तो लीन हो गए हैं आईने में, पंद्रह मिनट बीत गए हैं गांधी के, सामर्थ के बाहर हो गए । त्यागी की सामर्थ बहुत कम होती है त्याग के लिए तो बहुत होती हैं जीवन के रस के लिए बहुत कम होती है खिड़की से झांक कर देखा। रविंद्रनाथ तो जैसे के कहीं खो गए हैं आदम कद आईने के सामने वाल संवारे जाते हैं। गांधी जी ने कहा- 'क्या कर रहे हैं बुढ़ापे में, चलिए अब उनकी आंखों में दिखाई पड़ गया होगा रविंद्रनाथ को रविंद्रनाथ हंसते हुए बाहर आए गांधी जी ने कहा इस उम्र में और इतना बाल संवारते हैं। रविंद्रनाथ ने कहा जब जवान था बिना संवारे भी चल जाता था । तब ऐसे भी निकल पड़ता था, तब ऐसे भी सुंदर था अब संवारना पड़ता हैं और रविंद्रनाथ ने कहा की किसी को मैं करूप मालूम प हूं. इसे में हिंसा मानता हूं। किसी को सुंदर मालूम पडूं अच्छा लगूं इसे मैं अहिंसा म ानता हूं। किसी को करूप लगना भी तो चोट पहुचाना है लेकिन यह जीवन को रस लगने वाला करूप हैं, किसी को करूप लगना भी तो उसको दुःख पहुचाना हैं, किसी को सुंदर लगना भी तो उसको सुख पहुंचाना हैं। लेकिन यह जीवन के रस वाला क हेगा। इस रविंद्रनाथ ने जब पहली दफा यह स्कूल खोला तो यह कोई भरोसे का आ दमी नहीं था, यह। तो कौन इसके पास अपने बच्चों को भेजें। डर यही था की बच्चे बिगड़ न जाए क्योंकि रविंद्रनाथ वीणा बजाएगें नाचेंगे गीत गाएंगे। बच्चे क्या सिखे गे यह सब नाचना, गाना, और संगीत यह सब ठीक बात नहीं यह अच्छे लोगों के लक्ष्ण नहीं हैं फिर भी कुछ मित्रों ने बच्चे दिए लेकिन बच्चे ऐसे थे जो पहले ही इत ने बिगड़ चुके थे की रविंद्रनाथ उनको बिगाड़ नहीं सकते थे। इस आशा में दिए की इनको तुम क्या बिगाड़ोगे दस-पंद्ररहा बीस बच्चों को लेकर रविंद्रनाथ ने वहां स्कूल शुरू किया।
बंगाल के एक बहुत बड़े विचारक थे उन्होंने भी अपना बच्चा दिया हुआ था। वह ती न चार महीने बाद देख गए की क्या हालत है। देखा एक चेरी के वृक्ष के नीचे क्ला स लगी हुई है रविंद्रनाथ टीके बैठे हुए हैं पांच सात बच्चे नीचे बैठे हुए हैं पन्द्रह सो लह बच्चे ऊपर वृक्ष पर चढ़े हुए हैं। फल पक्क गए हैं बच्चे फल खा रहे हैं। पांच स बच्चे नीचे बैठे हैं किताब बंद हैं रविंद्रनाथ आंखें बंद किए बैठे हैं। यह क्लास ल गी हुई है। क्रोध से भर गए वह मित्र जाकर हिलाया रविंद्रनाथ को कहा यह क्या ह रहा, यह स्कूल है ? यह क्लास लगी हुई है ? यह पढ़ाई हो रही हैं। यह क्या है य ह लड़के ऊपर चढ़े हैं। रविंद्रनाथ ने कहा की मैं भी दुःख अनुभव कर रहा हूं। लेकि
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