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भारत की खोज
मानदार हो तो नेहरू को गांधी के खिलाफ खड़े होना चाहिए । लेकिन गांधी के साथ प्रतिष्ठा मिलती है इज्जत मिलती है। और गांधी के खिलाफ होकर नेहरू हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नहीं हो सकते थे।
एक उन्नीस साल तक अकेला आदमी तानाशाही नहीं कर सकता था। वह गांधी के बल पर की गई तानाशाही । अब नेहरू को बिलकुल विश्वास नहीं गांधी की किसी बा त में कि गांधी जो भी कह रहे हैं वह सब उनको गड़बड़ मालूम होता है।
वाचक—तो वह कह तो रहे थे पुस्तकों में कि जो गांधी कहते हैं वह समझ में नहीं आता और गड़बड़ है।
हां, जब समझ में नहीं आता, तो जब समझ में नहीं आता। और लिखते हो कि गड़ बड़ है तो इसका विरोध करो, और फिर जब हुकूमत में आते हो तो फिर खादी को प्रोत्साहन मत दो। फिर ग्रामोद्योग की बात मत करो! फिर गांधी की फोटो लगाकर राष्ट्रपिता मत बनाओ। यानि मेरा मतलब समझ रहे हैं आप, इनसिंसियर्टी जो मैं कह रहा हूं वह यही कि नेहरू को लगता तो ऐसा कि गांधी गलत हैं और व्यवहार ऐसा करते हैं वह कि जैसे गांधी सब कुछ ठीक हैं ।
वाचक-नियोजक का तो पुरस्कार उन्होंने ही दिया.
ना, ना हर्जा है, हर्जा है क्योंकि अगर नेहरू बर्थ कंट्रोल के लिए प्रोत्साहन देते हैं तो उन्हें कहना चाहिए कि, 'गांधी जो वर्थ कंट्रोल के लिए जो कहते हैं वह विलकुल गलत है, और खतरनाक है यह वह कहने की हिम्मत नहीं जुटाते, क्योंकि यह पोलि टीकल मामला होगा, इसमें नुकसान पहुंचेगा नेहरू को । मेरा मतलब समझ रहे हो न तुम
वाचक - (अस्पष्ट)
ना ना ना मैं यह ठीक और गलत का नहीं, मैं तो कहूं सिंसियर नहीं है। यानि मैं कहता हूं कि नेहरू गांधी से ज्यादा ठीक है लेकिन सिंसियर नहीं हैं । गांधी बिलकुल गलत हैं लेकिन एकदम सिंसियर हैं। मेरी जो तकलीफ है वह जो मैं जहां ठीक कह ता हूं ठीक का कुल मतलब मेरा इतना है। गांधी के साथ हिंदुस्तान में सैंकड़ों महात् मा थे। लेकिन गांधी की तरह सिंसियर कोई आदमी नहीं था। लेकिन गांधी की सिं सयर्टी बिलकुल गलत थी । जो उन्होंने दी हुई है और इसलिए मेरा कहना है कि उन की सिंसियर्टी खतरनाक है । क्योंकि एक आदमी आपकी गर्दन काट दे बिलकुल सिंसि यर्टी से, तो भी गर्दन ही काट रहा है आखिर में । उनको शक नहीं है वह जो कह र हे हैं वह गलत है या नुकसान पहुंचाएगा। शक हो तो फौरन रुक जाएं ।
वह जो जहां भी मैं कहता हूं उनको, जिस अर्थ में मैं कभी भी ठीक कहा हूं। वह इ तने अर्थ में ठीक कहता हूं। लेकिन जो भी गांधी कहते हैं वह जो गांधी में फिलोस्फी है। वह जो जिंदगी को देखने का ढंग है वह पूरा गलत है। और उसका विरोध कर बड़ा मजा यह है . .. कि गलत चीज ही चल सकती है क्योंकि सारा स
माज गलत है। आप मेरा मतलब समझ रहे है ना, ठीक चीज को चलना ही मुश्किल है ठीक चीज को चलने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। और गलत चीज ही चल सक
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