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________________ भारत की खोज दूसरे के कंधे पर दोनों हाथ रखे हुए हैं। तब तो बहुत मुसीबत हो गई वह भी सह रा खोज रहा है। इसलिए मैं सहारे के दर्पण को ही नहीं मानता। मैं मानता हूं एक एक व्यक्ति की इंडवीज्वललिटी को उसकी मुक्ति होनी चाहिए। अ और यह भी मेरी समझ है कि जब दो मुक्त व्यक्ति मिलते हैं तो एक दूसरे को आनंद देते हैं और जब दो बंधे हुए व्यक्ति मिलते हैं तो कैसे आनंद देंगे ? तुम मेरी लगाम पकड़े हो मैं तुम्हारी लगाम पकड़े हूं। क्या आनंद देंगे? और तरकीबों से लगाम पक. हुए हैं । एक पति है उसकी लगाम पत्नी पकड़े हुए है। कहीं खिसक ना जाए यहां वहां । पति ने पत्नी की लगाम पकड़े हुए है। और ब्राह्मण ने दोनों की लगाम बंधवा दी है, सा त चक्कर लगवा कर और सारे समाज ने कहा कि ठीक है लगाम अब बंध गई अव छोड़ नहीं सकते हैं। खाते हो कसम कि छोड़ोगे नहीं, उन दोनों ने कसम खा ली । अब यह बेवकूफी हो गई । और अब रस ही चला गया जीवन की जो सुगंध होनी चा हिए, प्रसन्नता वह सब गई। अब बोझ ही बोझ होगा । वाचक-. पति पत्नी में कभी आनंद नहीं आ सकता। पति पत्नी होने की वजह से नहीं आ सकता, दो मित्र की तरह आ सकता है। क्योिं क पति पत्नी होना बिलकुल ही अगली, बात है। वह बर्दाश्त के बाहर है। अग र रिते भर भी बुद्धी है तो बर्दाश्त के बाहर है। मित्रों में आनंद आ रहा है। और इ सलिए वही पत्नी और वही पति जब तक विवाह नहीं हुआ था, अगर उनमें प्रेम रह हो, तो जैसे आनंदित थे। विवाह के बाद आनंद सब खो गया। वाचक- आचार्य जी समाज के लिए आज क्या... के ऊपर निर्भर है सब । ओशो—आज से नहीं है इसलिए समाज बिलकुल सड़ा गला है, एक दम गंदा है नर्क है हमारा समाज। लेकिन होना चाहिए तो समाज स्वर्ग बन जाए । वाचक–तो फिर हमारे पूर्वज क्या... ओशो - पूर्वज तो हमेशा ही ना समझ होते हैं। वाचक- नहीं, ओशो—मेरा मतलब समझ लेना । मेरा मतलब यह है कि मुझसे आने वाले पांच सौ साल बाद जो बच्चे आएंगे। उनसे मैं ज्यादा नासमझ हूं। क्योंकि उनको पांच सौ साल का अनुभव और समझ मिल जाएगी । वाचक-लेकिन हमारे विचार से हमसे पहले जो थे वह भी बहुत सुखी थे । ओशो - कौन सुखी था वह ऋषि मुनि पूर्वज.. वाचक–ना, ना जो कुछ समाज के हमें बांधे हुए है जो पति पत्नी, कुछ एक समाज के नियम हैं जो नहीं थे, तब बहुत आनंद था, उन तक पहुंच पाना ही था । ओशो - नहीं, नहीं तब भी आनंद नहीं था । वाचकक - क्यों, क्योंकि दब गए है ओशो-तब भी आनंद नहीं था इसीलिए तो यह सारा इंतजाम करना पड़ा। नहीं तो इंतजाम काहे के लिए करते हम । तब दूसरी तरह का दुःख था कि जिस आदमी के Page 133 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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