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भारत की खोज
को पता है। रूस ने उन्नीस सौ सत्रह में पुराने को विदा दे दी नमस्कार कर दी। और कोई कारण नहीं है रूस की प्रगति का । पचास साल में रूस में इतनी प्रगति हुई है जितनी हम जैसे लोग पांच हजार साल में नहीं कर सकते।
पचास साल में रूस क्या से क्या हो गया। लेकिन क्या किया रूस ने ? राज क्या है ? सिक्रेट क्या है ? सिक्रेट यह है कि उन्नीस सौ सत्रह की तारीख में कसम खा कर उन् होंने पीछे को नमस्कार कर लिया कि तुम पीछे हम आगे जाते हैं। अब हमें क्षमा क रो। अब हमारे सिर पर मत सवार रहो ।
अमरीका ने इतनी प्रगति क्यों की? आपको पता है । अमरीका नया मुल्क है उसके प ास कोई पुराना अतीत नहीं है। उसकी उम्र ही केवल तीन सौ साल है। तीन सौ सा ल कुल उनकी सभ्यता की उम्र है उनके पास पुराना कुछ है ही नहीं। कोई इतिहास जैसी चीज नहीं है। कोई अतीत नहीं है । इसलिए अमरीका ने आकाश छू लिया। संप त्ति का इतना निर्माण हुआ जैसा कभी ना हुआ । शक्ति इस तरह फूटी जिस तरह क भी नहीं फूटी। आज सारी दुनिया को भोजन दे रहे हैं ।
एक हम हैं कि पांच हजार साल से सिवाय इस खेती के और कुछ भी नहीं कर रहे। मुल्क के नब्बे आदमी सौ में से खेती में लगे हैं। बाकी सौ में से आज भी वह खेती में जो लगे हैं उनकी चीजें लाने ले जाने की दलाली कर रहे हैं सारा मुल्क पांच ह जार साल से खेती कर रहा है। और जब देखो तब हाथ जोड़े खड़ा है कि अकाल प. ड गया। भूख हो गई, फलाना हो गया । अब तो बीस साल से हम युनिवर्सल वैगिंग कर रहे हैं खड़े हैं। सारी दुनिया के सामने भिखारी बने हुए। हमको भीख दो, और जनसे भीख मांग रहे हैं उनको गाली दे रहे हैं और तुम तुम मैटीयरलइष्ट हो। हम इस्प्रच्अलिस्ट हैं। क्योंकि हम पैदा नहीं कर रहे हम सिर्फ मांगते हैं। हम भी पैदा कर ते हैं। सिर्फ एक चीज पैदा करते हैं, बच्चे पैदा कर सकते हैं ।
हम आध्यात्मिक लोग हैं भौतिक लोग गेहूं पैदा करते हैं गेहूं पदार्थ है । भौतिक लोग मशीनें बनाते हैं कारें बनाते हैं, हम आध्यात्म, हम आत्माएं पैदा करते हैं, हम बच् चे पैदा करते हैं। हम सिर्फ एक इंडस्ट्री है हमारे अंदर बच्चे पैदा करने की, वह हम करते चले जाते हैं। अमरीका ने तीन सौ वर्ष में आसमान छू लिया हम तीन हजार वर्ष में भी कुछ नहीं कर पाते। रूस पचास साल में कैसी प्रगति की जिसकी कल पना करनी मुश्किल है। और हम हो क्या गया है हमें, हम तोड़ने से डर गए हैं। ह म तोड़ते ही नहीं, हम उसी को बचाए चले जाते हैं, बचाए चले जाते हैं। मैं एक घर में कुछ दिन तक मेहमान था। बहुत लखपति आदमी थे। जिनके घर मैं ठहरा लेकिन देखकर हैरान हो गया घर देखा तो ऐसा लगा जैसे किसी कबाड़ी का घर हो। पुराने डब्बे भी इकट्ठे हैं पुरानी बुहारियां भी जो टूट गई फूट रह गई जिनसे अब कोई उपाय झाड़ने का नहीं है। वह भी संभाल कर रखी हुई हैं । उस घर क भी कोई चीज फैंकी ही नहीं गई हैं ऐसा मालूम पड़ता है वहां सब इकट्ठा है। घर के लोगों को रहने की मुसिबत हो गई है। ना मालूम बाप दादाओं की शादी हुई होगी तो उनके साथ ट्रंक सूटकेश आए होंगे वह सब रखे हुए हैं ढ़ेर लगा हुआ है। दो चा
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