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________________ भारत की खोज त्री को लेकर भाग गया है। यह सब क्या बातें हैं यह सब सपना है। लेकिन पड़ोसी की स्त्री को लेकर भागने की अगर कोई कामना अचेतन में नग्नावादी रही होती तो सपना आसमान से पैदा नहीं होता है। वह सपना भीतर से आया है। वह सपना कह * छिपा है। उसने सपने को दवा दिया है। उसने मौका पाया जब आप सो गए। और आपका कंट्रोल ढीला हो गया, नियत्रंण ढीला हो गया, चित्त शिथिल हो गया तो व ह जो भीतर दवा था वह प्रकट हो गया और चित्त के परदे पर चलने लगा। सपने हमारे जाग्रत सत्य से ज्यादा सत्यतर हैं क्योंकि हमारे छिपे हुए मन को प्रकट कर रहे हैं। साधु-संन्यासियों के सपने देखिए। तो वह वही होंगे जो अपरधीयों ने जा गने में किया है। साधु-संन्यासी सपने में वही कर रहे हैं। अपराधी तो देख सकते हैं सपने साधू होने के, लेकिन साधू अपराधी होने के सपने देखते हैं। इसलिए साधु नींद लेने से डरते हैं, नींद से बहुत डर लगता है क्योंकि नींद में वह जो साधु चौवीस घं टे साधुता साधी है वह एक दम खो जाती मालूम पड़ती है। समझ नहीं पड़ता कि क या हो जाता है? बिलकुल उल्टा आदमी भीतर से प्रकट होने लगता है। वह उल्टा आदमी कहीं आसमान से नहीं उतरता वह हमने दबाया है वह हमारा तथ य है, वह हमारा फैक्ट है, वही हम हैं। इस हम को इनकार करने का एक उपाय थ [ जो हमने उपयोग किया भारत में और वह उपाय यह था भीतर हिंसा है वाहर से अहिंसा ओढ़ लो, भीतर हिंसा है पानी छान कर पीओ रात खाना मत खाओ, भीत र हिंसा है मांसाहार छोड़ दो, अहिंसक हो जाओगे। अहिंसक होना इतनी सस्ती वात नहीं है कि कोई मांसाहार छोड़ने से कोई अहिंसक हो जाए। अहिंसक कोई हो जाए तो मांसाहार छूट सकता है, वह दूसरी बात है। लेकिन मांसाहार छोड़ने से कोई अ हसक नहीं हो सकता। कोई अहिंसक हो जाए तो कुछ चीजें छूट सकती हैं, लेकिन कुछ चीजों के छूटने से कोई अहिंसक नहीं हो जाता। हिंसा भीतर है तो ऊपर से अहिंसा का वर्तन व्यक्तित्व को दो हिस्सों में तोड़ देगा। हिंसा भीतर सरकती रहेगी, अहिंसा ऊपर घूमती रहेगी। भीतर हिंसक आदमी तैयार रहेगा, जरा छेड़ दो और प्रकट हो जाएं। जरा छेड़ दो और प्रकट हो जाएं। हिंदुस्ता न में कितनी अहिंसा की वात गांधी जी ने और उनके साथियों ने की। और आजादी आई और हिंसा में डूब गया पूरा मुल्क, कोई दस लाख लोगों की हत्या हुई और करोड़ों लोगों को हत्या से भी ज्यादा दुःख झेलना पड़ा। यह कैसा देश है। अहिंसा की बातें कर रहा था फिर एक दम हिंसा का योगाल कहां से आ गया। यह कहां से पै दा हो गई। वह अहिंसा की बातें सब ऊपर थी, भीतर हिंसा थी, और हिंसा प्रतिक्षा कर रही थी कि कोई मौका मिल जाए. . . अभी हम यहां कितने अहिंसक भाव से वैठे हुए हैं। कोई किसी को मार नहीं रहा, कोई किसी की गर्दन नहीं दवा रहा ले कन अभी पता चल जाए वाहर कि हिंदू मुस्लिम दंगा हो गया है और आप बगल के आदमी की गर्दन दवा देंगे कि यह मुसलमान है, कि यह हिंदू है मारो छुरा इसको। यह आदमी अभी दोनों शांत बैठे थे। धर्म की बातें सुनते थे, गीता पढ़ते थे कुरान Page 103 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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