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________________ भारत का भविष्य मैंने सुना है कि एक आदमी रास्ते से पेरिस की भागा हुआ जा रहा था। और लोगों ने उससे पूछा कि इतनी तेजी क्या है? उसने कहा, मैं अपनी पत्नी के कपड़े लेकर जा रहा हूं। उन्होंने कहा, फिर भी इतनी जल्दी क्या है? उसने कहा, इसके पहले कि फैशन न बदल जाए मुझे घर पहुंच जाना जरूरी है। कभी हमने नहीं सोचा था कि फैशन की तरह ज्ञान बदल जाएगा। अब ज्ञान फैशन से भी तेजी से बदल रहा है। इसलिए आज विज्ञान की कोई बड़ी किताब लिखनी मुश्किल हो गई है। छोटी किताबें लिखी जा रही हैं। किताबें ही मुश्किल हो गई हैं। असल में, पत्रिकाओं में विज्ञान की खोजों की खबर दी जा रही है। क्योंकि जब तक मोटी किताब लिखी जाए तो मोटी किताब को लिखने में भी कम से कम वर्ष भर लगेगा। वर्ष भर में जो हमने लिखा है वह पिछड़ जाएगा। ज्ञान का जो एक्सप्लोजन है, यह जो ज्ञान का विस्फोट है, इसने सभी स्थिर समाजों के प्राण कंपा दिए हैं। बदलने की हिम्मत नहीं, बदलने की आदत नहीं, बदलने का अनुभव नहीं, और बदलाहट इतने जोर से टूटी है कि या तो, या तो हम अंधे हो जाएं और दुनिया से अपने को तोड़ लें और अपने कुएं में बंद हो जाएं या फिर हमें जोर से बदलना पड़ेगा। टूटने का भी कोई उपाय नहीं है, अपने कुएं में बंद होने का भी कोई रास्ता नहीं है। दीवालें खड़ी करके भी हम दुनिया के ज्ञान को रोक नहीं सकते। वह ज्ञान आएगा ही। और अगर हम रोकेंगे तो हम मरेंगे। बिना ज्ञान के भी मर जाएंगे। वह अज्ञान भी हमारी मौत बन जाएगा। यह जो ज्ञान का विस्फोट है इसने एक और कठिनाई पैदा की है, वह कठिनाई भी खयाल में ले लेनी जरूरी है, तो 'भारत किस ओर' उसे समझने में आसानी हो जाएगी। वह यह कठिनाई हुई है कि पुरानी दुनिया में बूढ़ा आदमी सदा ही ज्यादा जानता था। शिक्षक विद्यार्थी से हमेशा अनिवार्य रूप से ज्यादा जानता था। बाप बेटे से हमेशा ज्यादा जानता था। मां बेटी से हमेशा ज्यादा जानती थी। स्वभावतः, क्योंकि इतनी कम बदलाहट होती थी कि जिस आदमी के पास ज्यादा अनुभव था वही ज्यादा ज्ञानी था। अब बदलाहट इतनी तेजी से होती है कि जिस आदमी के पास जितना पुराना ज्ञान है वह उतना ही अज्ञानी हो जाता। आज शिक्षक और विद्यार्थी के बीच बहुत फासला नहीं है। अक्सर तो एक घंटे का फासला होता है। घंटे भर पहले वह तैयार करके आया होता है। बस उतना ही फासला होता है। और जब शिक्षक घंटे भर स्कूल या कालेज में पढ़ा चुका होता है तो विद्यार्थी और शिक्षक बराबर ज्ञान की स्थिति में आ गए होते हैं। और अगर कोई बहुत प्रतिभाशाली विद्यार्थी हो तो शिक्षक से ज्यादा जान सकता है। उसकी कोई कठिनाई नहीं रह गई। बेटा बाप से ज्यादा जानता है, क्योंकि बाप तीस साल पहले यूनिवर्सिटी से निकला होता है। बेटा तीस साल बाद यूनिवर्सिटी से आता है। तीस साल में ज्ञान नये आकाश छु लेता है। नई उपलब्धियां हो जाती हैं। हमेशा पहली दुनिया में बेटे ने बाप से पूछा था। लेकिन बहुत ज्यादा दिन वह दूर नहीं है जब हमेशा बाप को बेटे से पूछना पड़ेगा कि नया खयाल क्या है? नई स्थिति क्या है? नई समझ क्या है? नया सोच क्या है? नया विचार क्या है? नई उपलब्धि क्या है? और बहुत हैरानी न होगी कि हमें बूढ़े आदमियों को वापस रिफ्रेसर कोर्सिज के लिए युनिवर्सिटीज में भेजना पड़े। अभी इस संबंध में सझाव चलता है। पश्चिम के बहत बद्धिमान Page 59 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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