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________________ भारत का भविष्य कब संभव होगा? यह तब संभव होगा जब मशीन ने सारा काम ले लिया होगा। उसके पहले यह बड़े पैमाने पर संभव नहीं हो सकता है। इसलिए मैं तो वृहत उद्योग के पक्ष में हूं। और आप जो कहते हैं कि अंबर से इतना काम हो सकता है। अगर ठीक से समझें तो अंबर गांधीवादी का समझौता है। अंबर गांधीवादी का विकास नहीं, कंप्रोमाइज है। अंबर गांधीवादी की हार है। क्योंकि अंबर को अब कहां रोकिएगा? आप कह रहे हैं, आटोमेटिक हो जाए। तो मतलब क्या रहा? तो लूम ने क्या बिगाड़ा है? सिर्फ नाम रखने से फर्क पड़ता है। गांधीवादी की हार है अंबर। मैं इसलिए कहता हूं, यह मैं इसलिए कहता हूं कि रुकिएगा कहां? अगर एक आदमी पांच तकली चला सकता है अंबर से, तो पचास क्यों नहीं, पांच हजार क्यों नहीं? और एक आदमी पांच हजार चला सकता है तो एक आदमी के बिना चल सकती हो तो हर्ज क्या है? इसमें रुकिएगा कहां? इसमें सवाल जो है, इसको मैं कंप्रोमाइज कहता हूं, यह हार है, गांधीवादी मरा अंबर चरखे के साथ। अंबर चरखा दफन करने वाली व्यवस्था है उसकी, क्योंकि अब रुकेगा कहां वह? रुकने का कहां इंतजाम करिएगा? और जब आप कहते हैं कि अंबर से इतना काम हो रहा है। आटोमेटिक अंबर हो जाए तो और काम होगा। तो मतलब यह रहा कि आटोमेटिक मशीन और आटोमेटिक अंबर में सिर्फ नाम का ही फर्क है, गांधीवादी मशीन हो गई। तो कोई फर्क पड़ने वाला है। जो मैं आपसे कह रहा हूं वह यह कह रहा हूं कि अगर गांधी जी की हम दशा को समझें मन की तो अंबर के पक्ष में नहीं हैं। गांधी जी सख्त खिलाफ हैं यंत्र के बढ़ने के। और ऐसे यंत्रों के भी खिलाफ हैं जिनको आप कभी सोच नहीं सकते थे। टेलीग्राफ के भी खिलाफ हैं। उन्नीस सौ पांच में खिलाफ थे। मैं भी कई दफा सोचता था कि उन्नीस सौ पांच में लिखी गई किताब पर भरोसा नहीं करना चाहिए। आदमी फिर और चालीस साल जी लिया है तो आदमी और जिंदा आदमी था, रोज बदल रहा था। लेकिन उन्नीस सौ पैंतालीस में नेहरू ने एक पत्र में गांधी जी को पूछा है कि आप हिंदू स्वराज में कही गई बातों से क्या अब भी राजी हैं? तो गांधी जी ने कहा, अक्षर अक्षर। हिंदू स्वराज में कहा हुआ है कि रेलगाड़ी पाप है। तो जो आदमी रेलगाड़ी को पाप कह रहा है वह आदमी अंबर चरखा वाला नहीं है। टेलीग्राफ खतरनाक है। इसकी जरूरत नहीं है। हवाई जहाज की जगह नहीं है। आप हैरान होंगे कि एलोपैथी की भी जगह नहीं है। बड़े यंत्रों की जहां भी सुविधा है वहां कोई जगह नहीं है। और उन्नीस सौ पैंतालीस में भी वे कहते हैं कि मैं हिंदू स्वराज से सहमत हूं। यह गांधीवादी का समझौता है गांधी जी का नहीं। यह जो मैं कह रहा हूं, अंबर चर्खा है, यह गांधी के मरने के बाद गांधीवादी का समझौता है, वह रोज समझौता करेगा। क्योंकि उसे करना पड़ेगा। क्योंकि उसकी बातें नासमझी पूर्ण हैं। उनको कोई मान सकता नहीं। अब उसको रोज-रोज इन चीज से लौटना पड़ेगा वापस, वह रोज वापस लौट रहा है। बीस साल पूरे होते-होते वह वहीं खड़ा हो जाएगा जहां गांधीजी ने उसको पकड़ा था। वह वापस लौट आएगा। गांधी जी ने जो ऊहापोह पैदा किया था वह खत्म हो जाएगा क्योंकि वह न तो प्रगति के पक्ष में है, न वह मनुष्य के हित में है, न उससे मंगल सिद्ध होने वाला है, न उससे कुछ होने वाला है। और अब जो सवाल है, कई दफा मुझे ऐसा लगता है कि गांधी जी को जिंदगी के सवालों का भी पूरा साक्षात नहीं है। इसलिए वे बहुत अजीब सी बातें कहते रहते हैं। Page 194 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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