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भारत का भविष्य
गुलामी पनपी है वहां वह संस्कृति नष्ट हो गई है। रोम का, सब आप जो-जो बताते हैं। और हमने देखा कि टाल्सटाय और जितने अच्छे से अच्छे विचारक हुए।
असल में, ऐसी गलत बातें जो करते हैं उनको आप अच्छा विचारक कहते हैं और कोई बात नहीं है। मजा यह है कि टालस्टाय को आप अच्छा आदमी मानते हैं। इसकी वजह टालस्टाय अच्छा है ऐसा नहीं। टालस्टाय से दुष्ट आदमी खोजना मुश्किल है पृथ्वी पर। मैं आपको कारण से कहता हूं। टालस्टाय से ज्यादा कामुक, दुष्ट, घृणा और हिंसा से भरा आदमी खोजना मुश्किल है। लेकिन आपको अच्छा लगेगा क्योंकि वह आप जिसको अच्छा समझते हैं वह कह रहा है। वह आखिरी दम तक बेचैन और परेशान मरा है। गांधी ने अपने जितने गुरु चुने, सारी दुनिया में छांट कर नासमझ चुने। छांट कर, उसकी वजह यह नहीं कि वे योग्य आदमी थे। उसकी वजह गांधी जी की जो समझ थी उससे वे चुनाव करेंगे। उसका चुनाव तो वे टालस्टाय को चुनेंगे, रस्किन को चुनेंगे, थॉरो को चुनेंगे, ये कोई भी आदमी जगत के हित में नहीं है। ये कोई भी आदमी जगत के हित में नहीं है। इनकी जो बातचीत है वह हमेशा पीछे लौटने वाली बातचीत है। और ये सब परेशान लोग हैं। ये बहुत व्यथित और हैरानी से और जिंदगी जिनकी जरा भी सुलझी हुई नहीं है, बहुत उलझी हुई और परेशानी से भरी हुई है। गांधी जी की जिंदगी भी बहुत सुलझी हई जिंदगी नहीं है। मगर हम हमारी तकलीफें ये हैं कि हम जिसको महात्मा मान लें, उसको हम देखना बंद कर देते हैं। असल में, महात्मा का मतलब यह है कि जिसकी तरफ हमने आंख बंद कर लीं, अब हम देखेंगे न। और हम समझाए चले जाते हैं कि गांधी और कस्तूरबा का संबंध आदर्श दांपत्य है। इससे रद्दी दांपत्य खोजना मुश्किल है। मगर हम कहे चले जाते हैं, कहे चले जाते हैं। आधी रात को गांधी कस्तूरबा को निकाल घर के बाहर कर देते हैं। इनकी कलह शाश्वत है। लेकिन हम आदर्श कहे चले जाते हैं, हम लेख लिखे चले जाते हैं। टालस्टाय और उसकी पत्नी के संबंध इतने नारकीय हैं जिनका हिसाब लगाना मुश्किल है। लेकिन सारी की सारी कठिनाई जो है हमारी वह यह है कि हम किसको अच्छा कहें। कई बार ऐसा होता है कि शायद ही कोई आइंस्टीन को अच्छा कहे। क्योंकि न तो वह चरखा चला रहा है, न वह पान का त्याग कर रहा है, न वह सिगरेट का त्याग कर रहा है, न शराब का त्याग कर रहा है। लेकिन मनुष्य-जाति को जो फायदा पहुंचने वाला है वह इस आदमी से पहुंचने वाला है। न टालस्टाय से पहुंचने वाला है, न रस्किन से, न गांधी से। क्योंकि कल एटामिक एनर्जी ही मनुष्य को सारी गलामी से मक्त कर पाएगी। लेकिन इस सबको कभी महात्माओं में हम फिक्र न करेंगे। हम महात्माओं की फिक्र उनकी करेंगे जो कि किसी चीज से किसी को कभी मुक्त नहीं कर पाए
लेकिन हमारी कोई तृप्ति उनसे जरूर होती है। कोई तृप्ति हमारी जरूर होती है, उसकी वजह से हम उनको अच्छा आदमी कहते हैं। अब हमारी क्या तृप्ति होती है? टालस्टाय से हमें कौन सी तृप्ति मिलती है? रस्किन से कौन सी तृप्ति मिलती है? गांधी से कौन सी तृप्ति मिलती है? असल में, गरीब आदमी इतने दिन से गरीब है तो उसे अपनी गरीबी में ग्लोरीफिकेशन चाहिए। उसको चाहिए कि गरीबी कोई ऊंची चीज है। एक आदमी पांच
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