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________________ भारत का भविष्य रखा और आहिस्ता-आहिस्ता पानी को गर्म करना शुरू किया, वह गर्म करता गया, इस गर्म करने में उसने कोई आठ घंटे लगाए। पानी उबलने लगा, मेंढक वहीं बैठा रहा और उबलता रहा। आठ घंटे में वह मेंढक जो है कंडीशंड हो गया। आठ घंटे में वह धीरे-धीरे - धीरे-धीरे इतनी धीमी गति से गर्मी बढ़ी कि मेंढक उसके लिए राजी होता गया । मेंढक आगे बढ़ता गया, राजी होता गया, गर्मी पीछे चलती रही, मेंढक सदा आगे होता गया । छलांग उसने वहां भी लगाई लेकिन पूरे बर्तन के बाहर छलांग लगाने की जरूरत न पड़ी। पुराने गर्मी का जो उसके शरीर का तल था, उसने इंच भर आगे बढ़ कर छलांग ले ली और अपने शरीर की गर्मी को आगे कर लिया। वह गर्म होता रहा, मर गया, उसे पता नहीं चला। लेकिन उतने ही उबलते पानी में नये मेंढक को डालो, छलांग लगा कर बाहर हो जाएगा। क्यों ? क्योंकि गर्मी बहुत आगे, मेंढक बहुत पीछे पड़ गया और मेंढक को मौका नहीं मिला कि वह गर्मी के लिए एडजेस्ट हो जाए। पुरानी दुनिया एडजेस्टीड थी । उसका एडजेस्टमेंट पक्का था। क्योंकि ज्ञान इतने धीमे बढ़ता था कि एक आदमी की जिंदगी में कोई बुनियादी फर्क नहीं पड़ते थे । जन्म लेते वक्त आदमी दुनिया को जहां पाता था करीब-करीब वहीं मरते वक्त छोड़ता था । न रास्ते बदलते थे, न बैलगाड़ी बदलती थी, न खेती बदलती थी, न मकान बदलते थे, न दवाई बदलती थी, कुछ नहीं बदलता था। या बदलाहट इतनी धीमी होती थी कि उस बदलाहट की कोई चोट आदमी पर नहीं पड़ती थी । पुराना इतना ज्यादा होता था, नया इतना कम होता था कि पुराना उसे आत्मसात कर जाता था, पी जाता । इधर पचास वर्षों में मुश्किल हो गई। ज्ञान छलांगें लगा रहा है बहुत आगे । आदमी जमीन पर रहने के योग्य नहीं हो पाया और विज्ञान चांद पर पहुंचा दिया है। आदमी अभी जमीन पर रहने के योग्य बिलकुल नहीं है। इसलिए बर्ट्रेड रसल ने जिस दिन पहली दफा आदमी ने पृथ्वी की सीमा को पार किया, आर्बेट को पार किया, उस दिन जो वक्तव्य दिया था वह बहुत उचित था । बर्ट्रेड रसल ने यह कहा कि मैं बहुत परेशानियों से घिर गया हूं। जब कि सारी दुनिया ने स्वागत किया। तब बट्रेंड रसल ने कहा कि मैं बहुत एंजाइटी और चिंता से भर गया हूं। क्योंकि जिस आदमी ने अभी पृथ्वी की बेवकूफियों को अंत नहीं किया और पृथ्वी को बेवकूफियों से भर दिया, वह अपनी बेवकूफियों को चांद पर भी ले जाने की कोशिश कर रहा है। कहीं इसकी बीमारियां सारे जगत में न फैल जाएं? अभी जमीन ही इतनी नासमझी से भरी है, लेकिन ज्ञान हमारा चांद पर पहुंचाने वाला हो गया। हमारी सारी नासमझियां आदमी का सारा ढंग जीने का पुराना है और ज्ञान ने छलांग ले ली है। अब इस ज्ञान ने नई स्थितियां बना दी हैं, जिनके साथ एडजेस्ट होना पड़ेगा। एक आदमी है अमेरिका में, उस आदमी ने एक छोटा सा प्रयोग किया जो हैरानी का है। उसने एक प्रयोग किया, वह गोरा आदमी है, सफेद चमड़ी का आदमी है। उसने एक प्रयोग किया कि उसने अपने शरीर पर कलरपिग्मेंटस के इंजेक्शन लगवाए और अपने शरीर को नीग्रो जैसा काला करवा लिया। उस आदमी का नाम है— हावर्ड ग्रेफीन । हिम्मत का प्रयोग किया। उसने इंजेक्शनस लगवा कर अपनी सारी चमड़ी को काला करवा लिया। बाल घुंघराले करवाने की कोशिश की, लेकिन नहीं बन सके, तो उसने सिर घुटवा डाला। एक रात वह पूरी तरह नीग्रो होकर अपने कमरे से बाहर निकल गया । यह अनुभव करने कि एक सफेद आदमी नीग्रो की चमड़ी में किस स्थिति से गुजरेगा। वह है तो सफेद आदमी। लेकिन अमेरिका में नीग्रो की क्या स्थिति है सफेद Page 176 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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