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________________ भारत का भविष्य हुए हैं। वह भी अपने घंटे बजा रही है। कोई राम न सुनाई पड़ जाए, किसी को कृष्ण न सुनाई पड़ जाए। पुरानी पीढ़ी अपने कानों के घंटे बजा रही है कि दुनिया में जो नई आधुनिकता का एक्सप्लोजन हुआ है, जो नये ज्ञान का विस्फोट हुआ है वह पता न चल जाए। क्योंकि उसके पता चलने से उसके पैर के नीचे की जमीन खिसक जाएगी और नई पीढ़ी उसकी प्रतिक्रिया में, रिएक्शन में पुराने को सुनने को बिलकुल राजी नहीं है। ध्यान रहे, ये दोनों ही बातें खतरनाक हैं। क्योंकि नई पीढ़ी के पास कोई जड़ें नहीं होंगी। और जिस पीढ़ी के पास जड़ें न हों, वह ध्यान रहे, वह अगर फूल भी लाएगी तो वे फूल प्लास्टिक और कागज के होंगे, असली फूल नहीं हो सकते हैं। और पुरानी पीढ़ी खयाल रखे कि अगर उसके पास नये फूल खिलाने की क्षमता नहीं हैं तो अकेली जड़ें बहुत कुरूप और बहुत भद्दी और बेमानी हैं, और सिर्फ बोझ बन जाती हैं। अकेली जड़ों का कोई मूल्य नहीं हैं। जड़ों की सार्थकता इसमें है कि वे रोज नये फूलों को जन्म दे सकें। जड़ें अपने में तो कुरूप होती हैं लेकिन सुंदर फूलों को जन्म देने की क्षमता होती है तो जड़ें जीवित होती हैं। पुरानी पीढ़ी पुरानी जड़ों को पकड़ कर बैठी है और नये फूलों से डरी हुई है। जड़ें भी सड़ेंगी पुरानी पीढ़ी भी सड़ जाएगी। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की बगावत और खिलाफत में जड़ों को इनकार करती है और सिर्फ नये फूलों को लिए बैठी है, उसके फूल उधार हैं, उसके फूल मांगे हुए हैं, उसके फूल दूसरों से लिए गए, बासे सेकेंड हैंड ही हो सकते हैं। जो फूल पश्चिम में खिलते हैं वैसे फूल हमारे यहां भी खिलें यह तो उचित है, लेकिन उन्हीं फूलों को हम हाथ में लिए बैठे रहें यह उचित नहीं है । जो फूल सारी दुनिया में खिल रहे हैं वे हमारी जमीन में भी खिलें, यह तो सौभाग्य होगा। लेकिन हम उन फूलों को उधार ले आएं और अपने घरों के गुलदस्तों में सजा कर बैठ जाएं, इससे हम अपनी दीनता को थोड़ी-बहुत देर के लिए छिपा सकते हैं लेकिन मिटा नहीं सकते। हिंदुस्तान की तकलीफ और हिंदुस्तान की जिच यह है कि पुरानी पीढ़ी जड़ों को पकड़े है और फूलों को इनकार कर रही है और नई पीढ़ी फूलों को स्वीकार करती है और जड़ों को इनकार करती है। ये दोनों ही खतरनाक वृत्तियां हैं। और मुझे ऐसे बहुत कम लोग दिखाई पड़ते हैं जो इन दोनों वृत्तियों से भिन्न हों। एक तरफ जगतगुरु शंकराचार्य और उनके अनुयायी हैं और दूसरी तरफ नक्सलाइट हैं, ये एक ही तरह के लोग हैं, इनमें बहुत फर्क नहीं हैं। और मजा यह है कि इन दोनों में ही चुनाव करना पड़े हमें, ऐसी स्थिति बना दी है, या तो कुआं चुनो या खाई चुनो। ये दोनों बातें खतरनाक हैं। नये भारत की ओर ? पहली बात तो यह समझ लेनी है जरूरी है कि नया भारत अगर नया होगा तो अपनी पुरानी जड़ों को आत्मसात करके होगा। नया भारत अगर नया होगा तो भारत रहते हुए नया होगा। अगर भारत न रह जाए और नया हो जाए तो उसको नया भारत कहने की कोई जरूरत नहीं है। पुरानी जड़ों को आत्मसात करना होगा । और कोई भी कौम अपनी पुरानी जड़ों के बिना बिलकुल नहीं जी सकती। कोई वृक्ष नहीं जी सकता; कोई कौम भी नहीं जी सकती। और एक बार हम अपनी सारी जड़ों को इनकार कर दें, तो हम हाट हाउस के पौधे हो सकते हैं लेकिन हम जिंदगी के तूफानों को झेलने योग्य नहीं रह जाएंगे । Page 161 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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