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________________ भारत का भविष्य यह देश धार्मिक नहीं हो पाया पांच हजार वर्षों के प्रयत्न के बाद भी। क्योंकि हमने जीवन से धर्म का संबंध नहीं जोड़ा, मृत्यु से धर्म का संबंध जोड़ा। तो ठीक है, मरने के बाद, वह बात इतने दूर है कि जो अभी जिंदा हैं उन्हें उसका खयाल भी नहीं हो सकता। बच्चों को कैसे उसका खयाल होगा, अभी बच्चों को मृत्यु का कोई सवाल नहीं है, जवानों को मृत्यु का कोई सवाल नहीं है। सिर्फ वे लोग जो मृत्यु के करीब पहुंचने लगे और मृत्यु की छाया जिन पर पड़ने लगी, उन वृद्धजनों के लिए भर धर्म का विचार जरूरी था । और स्मरण रहे कि वृद्धों से जीवन नहीं बनता, जीवन बच्चों और जवानों से बनता है। । जो जीवन से विदा होने लगे वे वृद्ध हैं । तो वृद्ध अगर धार्मिक भी हो जाएं तो जीवन धार्मिक नहीं होगा क्योंकि वृद्ध धार्मिक होते-होते विदा के स्थान पर पहुंच जाएंगे। वे विदा हो जाएंगे। जिनसे जीवन बनना है, जो जीवन के घटक हैं, उन छोटे बच्चों और जवानों से धर्म का क्या संबंध ? उनके लिए धर्म ने कोई भी व्यवस्था नहीं की कि वे कैसे धार्मिक हों ? फिर जब पारलौकिक बात हो गई धर्म की, तो कवि लोगों के लिए चिंता रही उसकी। क्योंकि परलोक इतनी दूर है कि उसकी चिंता सामान्य मनुष्य के लिए करनी कठिन है। कुछ लोग जो अतिलोभी हैं, इतने लोभी हैं कि वे इस जीवन का भी इंतजाम करना चाहते हैं और मरने के बाद का भी इंतजाम करना चाहते हैं। जिनकी ग्रीड, जिनका लोभ इतना ज्यादा है, वे लोग भर धार्मिक होने का विचार करते हैं। जिनका लोभ थोड़ा कम है, वे फिक्र नहीं करते कि मरने के बाद जो होगा वह देखा जाएगा। तो अजीब बात हो गई! हमारे बीच जो सबसे ज्यादा लोभी लोग हैं, वे लोग संन्यासी हो जाते हैं। क्योंकि उन्हें इसी जीवन का इंतजाम नहीं करना, उन्हें अगले जीवन का इंतजाम भी करना है। लेकिन जो सामान्य लोभ के लोग हैं, वे कहते हैं, ठीक है, मकान बन जाए, धन हो जाए, फिर देखा जाएगा। मौत जब आएगी तब देखेंगे। अभी इतना मौत का विचार करने की जरूरत नहीं । और यह स्वस्थ लक्षण है । यह कोई अस्वस्थ लक्षण नहीं है। जो आदमी जिंदा रहते हुए मृत्यु का बहुत चिंतन करता है वह अस्वस्थ है, वह बीमार है, वह रुग्ण है। उस आदमी के जीवन-ऊर्जा ने कहीं कोई कमी है, वह जीने की कला नहीं जानता है इसलिए मृत्यु के बाबत सोचना शुरू कर दिया। स्वामी राम जापान गए। जिस जहाज पर वे थे एक नब्बे वर्ष का जर्मन बूढ़ा चीनी भाषा सीख रहा था। अब चीनी भाषा सीखनी बहुत कठिन बात है, शायद मनुष्य की जितनी भाषाएं हैं उन में सबसे ज्यादा कठिन बात । क्योंकि चीनी भाषा के कोई वर्णाक्षर नहीं होते, कोई क ख ग नहीं होता, वह तो चित्रों की भाषा है। इतने चित्रों को सीखने नब्बे वर्ष की उम्र में, अंदाजन किसी भी आदमी को दस वर्ष लग जाते हैं ठीक से चीनी भाषा सीखने में। तो नब्बे वर्ष का बूढ़ा सीख रहा है सुबह से शाम तक । यह कब सीख पाएगा? सीखने के पहले इसके मर जाने की संभावना है। और अगर हम यह भी मान लें बहुत आशावादी हों कि यह जी जाएगा दस-पंद्रह साल, तो भी उस भाषा का उपयोग कब करेगा ? जिस चीज को दस साल सीखने में लग जाएं, अगर दस-पच्चीस वर्ष उसके उपयोग के लिए न मिले तो वह सीखना व्यर्थ है। लेकिन वह बूढ़ा सुबह से शाम तक डेक पर बैठा हुआ और सीख रहा है। Page 149 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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