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भारत का भविष्य
उगेंगे, जहां नई प्रभात होगी, जहां नया समाज होगा, जहां नया ज्ञान होगा, जहां नया जीवन होगा। वहां तुम देखो, उसकी पुकार सुनो भविष्य की, छोड़ो अतीत को, आगे जाओ। जीवन की धारा निरंतर आगे जाती है। गंगा निकलती है गंगोत्री से फिर पीछे तो नहीं लौटती, फिर पीछे लौट कर भी तो नहीं देखती; फिर भागती है, भागती है उस अज्ञात सागर की तरफ जिसका उसे कोई भी पता नहीं, कहां होगा? अगर वह डर जाए और सोचे कि कहां जाती हूं अनजान रास्तों, पर पहाड़ होंगे, खाइयां होंगी, खंदक होंगे, जंगल होंगे, न मालूम कैसा क्या होगा? कहां जाऊं? यहीं गंगोत्री में सिकुड़ कर रह जाऊं, पीछे लौट कर देखती रहूं, पकड़े रहूं गंगोत्री को ही। तो फिर गंगा सागर तक नहीं पहुंचेगी। ऐसी भयभीत गंगा सागर तक नहीं पहुंच सकती। नहीं, उसे छोड़ देना पड़ता है गंगोत्री को। बही जाती है आगे, पीछे को छोड़ती चली जाती है। अनजान-अपरिचित रास्तों पर, न कोई पुलिस का आदमी मिलता है रास्ते में जिससे पूछ ले कि सागर कहां है, न कोई धर्मगुरु मिलते हैं जिनसे पता लगा ले कि सागर कहां है। नहीं; अतीत तो ज्ञात है भविष्य सदा अज्ञात है। भागती जाती है, भागती जाती है। लेकिन एक दिन सागर पर पहुंच जाती है। जीवन की सारी धारा भविष्य की तरफ है। एक बच्चा मां के पेट से पैदा हुआ। रुक नहीं जाता मां के गर्भ को पकड़ कर, कहे कि नहीं जाता कहां भेजती है, कहां जाऊं, अनजान रास्ते हैं, अपरिचित दुनिया है। क्या होगा, क्या नहीं होगा? गर्भ बहुत सुरक्षित है, सिक्योरिटी है, कंफर्टेबल है। उससे ज्यादा सुविधापूर्ण जगह दुनिया में फिर मिलने वाली नहीं है। कितने भी अच्छे कोच बनाओ, कितने ही अच्छे कमरे बनाओ, मां के गर्भ से ज्यादा सुविधापूर्ण और आनंददायी जगह मिलने वाली फिर नहीं है। कहां जाऊं? न भोजन की फिक्र है, न कोई चिंता है, न कोई नौकरी है, न कोई बेकारी है। आनंद में हूं, चौबीस घंटे आनंद में हूं। कहां जाऊं? बच्चा अगर इंकार कर दे और मां के गर्भ में रह जाए तो क्या होगा? । नहीं: लेकिन जाना पड़ता है, जीवन की धारा आगे की तरफ है। मां को उसे छोड़ देना पड़ता है, मां बहुत प्यारी है। छोड़ने का मतलब यह नहीं कि मां के प्रति प्रेम कम हो गया। लेकिन जीवन का सूत्र यह है कि मां को बच्चे को छोड़ देना पड़ेगा। वह अलग होगा मां से, बढ़ेगा। कुछ दिन फिर भी मां से चिपटा रहेगा, असहाय है, फिर जवान हो जाएगा, फिर अपनी दुनिया के रास्ते पर चला जाएगा। शायद मां उसे भूल भी जाएगी, कोई और स्त्री उसके प्रेम को पकड़ लेगी, किसी और स्त्री के पीछे वह पागल हो जाएगा। शायद मां की स्मृति भी खो जाएगी। जीवन आगे जा रहा है, आगे जा रहा है, आगे जा रहा है। आगे बढ़ता चला जा रहा है। इसमें पीछे रुकने का उपाय नहीं। जीवन की पूरी चेतना निरंतर आगे जा रही है। एक बीज है; टूट जाता है, मिट जाता है फिर एक अंकुर की यात्रा शुरू होती है। तो यह हम ध्यान में रखें कि अतीत के साथ जकड़ जाना जीवन के विकास में बाधा है और हमारा मुल्क अतीत के साथ बहुत बुरी तरह जकड़ा हुआ है। उन सिद्धांतों के नाम कुछ रहे हों, उन वादों के नाम कुछ रहे हों, लेकिन हमारा देश, हमारी प्रतिभा अतीत से जकड़ी हुई प्रतिभा है। इसकी अतीत से मुक्ति चाहिए। इसका अतीत से मुक्त हो जाए बिना इसको भविष्य में गति नहीं मिल सकती। एक छोटी सी बात और मैं अपनी बात पूरी कर दूंगा। कुछ मित्रों ने यह पूछा है कि आपकी टेक्नालॉजी और साइंस के विकास की बातें हमें भौतिकवादी न बना देंगी। तुमने कभी यह नहीं पूछा तुम्हारा शरीर तुम्हें
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