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________________ भारत का भविष्य तो उसने कहा, क्या रखा है वहां उस जल-प्रपात में! कुछ पहाड़, कुछ पत्थर और ऊपर से पानी गिर रहा! मैं तो हैरान हूं कि लोग इतनी अंधेरी रात में, उजली रात में, दिन में, दोपहर में, धूप में कि क्या देखने वहां आते हैं? वहां कुछ भी नहीं है! कुछ पत्थर पड़े हैं और पानी गिर रहा है। पत्थरों के ऊपर पानी गिर रहा है और लोग उसे देखने जाते हैं। आप ही जाइए, मुझे जाने की जरूरत नहीं है। मैं बहुत हैरान हुआ! मैंने अपने मित्र से कहा कि तुम्हारे ड्राइवर ने बड़ा गलत धंधा चुन लिया, अगर वह धर्मगुरु हो जाता तो बड़ा सफल हो सकता था। उसे जीवन को निंदा करने का सूत्र मालूम है। जल-प्रपात जैसी अभूतपूर्व घटना को उसने दो छोटी सी चीजों में तोड़ दिया—पत्थर और पानी! और क्या रखा है वहां! अब उसकी बात को आप गलत भी नहीं कह सकते हैं। बिलकुल ही वैज्ञानिक बात मालूम पड़ती है कि पत्थर और पानी और है क्या वहां! लेकिन यह जल-प्रपात पत्थर और पानी ही नहीं है। जल-प्रपात पत्थर और पानी से कुछ बहुत बड़ी बात है। लेकिन वह उन्हीं को दिखाई पड़ सकता है, जो पत्थर और पानी के भीतर और गहरे और पार देखने में समर्थ हों। किसी को मैं प्रेम से गले से लगा लूं, तो कोई मुझसे आकर कह सकता है कि क्या रखा है गले से लगाने में! हड्डियों से हड्डियां मिल जाती हैं और क्या होता है! वह ठीक कहता है। अगर हम प्रयोगशाला में जाएं और जांच-पड़ताल करें तो हड़ियों से हडियां ही गले लगने से मिलेंगी, कुछ और मिलता हुआ दिखाई नहीं पड़ेगा। लेकिन जिन्होंने कभी भी किसी को हृदय से लगाया है प्रेम से, वे जानते हैं कि हड़ियों के पीछे कुछ और भी है जो मिल जाता है। लेकिन उसे प्रयोगशाला में जांचने का कोई उपाय नहीं। धर्मगुरु कहता है : क्या है जीवन में? जन्म, जरा, मृत्यु! क्या है जीवन में? रोग, शोक, दुख, बीमारियां ! क्या है जीवन में? शरीर में रखा क्या है? कुछ हड्डी, मांस-मज्जा, स्तन ! जोड़ है! वैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी के शरीर को अगर हम तोड़ें-फोड़ें तो मुश्किल से पांच-छह रुपये का सामान उसमें से निकलता है। आप किसी को प्रेम करते हैं। बेकार प्रेम करते है। पांच-छह रुपये खीसे में रख लें, उन्हीं को प्रेम करते रहें। क्योंकि आदमी या किसी स्त्री के शरीर में पांच-छह रुपये से ज्यादा का सामान नहीं है। कुछ थोड़ा एल्युमिनियम है, कुछ लोहा है, कुछ फास्फोरस है, कुछ हड्डियां हैं, यह सब मिला-जुला कर वे कहते हैं पांच-छह रुपये का सामान है। पांच-छह रुपये के सामान के लिए लोग जान लगा देते हैं दांव पर, जीवन गंवा देते हैं! पागल हैं बिलकुल! गलती में पड़े हैं वे! जीवन की निंदा के सूत्र हमने पकड़ रखे हैं और वे सूत्र क्या हैं? वे सूत्र हैं : विश्लेषण। जीवन की बड़ी इकाई को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दो और निंदा कर दो। शायद आपने मार्कट्वेन का नाम सुना हो। मार्कट्वेन अमेरिका का एक अदभुत हंसोड़ विचारक था। एक मित्र था मार्कट्वेन का वह मित्र एक बहुत बड़ा उपदेशक था। सारी अमेरिका में उसकी ख्याति थी। एक दिन उसने मार्कट्वेन को कहा कि कभी मेरे व्याख्यान सुनने जरूर आओ। हजारों-लाखों लोग सुनने आते हैं। तुम कभी नहीं आए। Page 135 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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