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भारत का भविष्य
बाहर, भीतर चाहिए संतोष। हमने उलटी हालत पैदा कर ली है। संतोष थोप लिया है ऊपर से और भीतर असंतोष है। इसे ठीक से समझ लेना जरूरी है। हमने ऊपर से तो संतोष के वस्त्र पहन लिए हैं और भीतर? भीतर सब तरह का असंतोष, सब तरह की अशांति, सब तरह की वासना पीड़ित करती है। चाहिए उलटा। जीवन के समस्त बाह्य उपक्रम में चाहिए असंतोष, चाहिए विकास की उद्दाम तीव्रता और भीतर निरंतर बाहर के असंतोष के बीच भी चाहिए एक शांति, चाहिए एक मौन। यह हो सकता है। बैलगाड़ी का चाक आपने चलते देखा होगा। बैलगाड़ी का चाक चलता है और बीच में एक कील थिर और बिना चले हए रहती। उसी थिर कील के ऊपर सारा चाक घूमता है। अगर कील भी घूमने लगे तो फिर चाक वहीं गिर जाएगा। बैलगाड़ी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ेगी। बैलगाड़ी का चाक घूम सकता है इसलिए की एक न घूमने वाली कील के ऊपर खड़ा है। भीतर तो चाहिए शांति, परिपूर्ण शांति, एक थिरता और जीवन के चक्र पर चाहिए तीव्र गति। तब तक कोई समाज, कोई देश अपनी मनीषा को इस भांति व्यवस्थित नहीं करता कि भीतर हो परम शांति और बाहर हो एक दिव्य असंतोष का चक्र। तब तक वह देश विकसित नहीं हो सकता है। तब तक वह देश रोज-रोज मरता चला जाएगा। लेकिन हम आज तक इस पैराडॉक्सीकल, इस विरोधी दिखने वाली चीज को समझने में समर्थ नहीं हो पाए। हम यह नहीं समझ सके कि एक शांत व्यक्ति भी जीवन की गति में जीवन को बदलने के लिए आतुर हो सकता है। हम यह भी नहीं समझ पाए कि एक परिपूर्ण शांत व्यक्ति भी युद्ध के क्षेत्र पर तलवार लेकर लड़ने को तैयार हो सकता है। हम कहेंगे जो शांत है वह लड़ने कैसे जाएगा? मैंने सुना है, खलीफा उमर के संबंध में एक बात सुनी है। उमर एक दुश्मन से सात वर्षों से लड़ रहा था। युद्ध निर्णायक नहीं हो पाता था। हर वर्ष युद्ध दोहरता था लेकिन कोई निर्णय नहीं होता था। सातवें वर्ष युद्ध के मैदान पर एक दिन उमर ने भाला फेंका। दुश्मन का घोड़ा मर गया, दुश्मन नीचे गिर पड़ा। वह उसकी छाती पर सवार हो गया, उसने भाला उठा कर उसकी छाती में भोंकने को था कि नीचे पड़े दुश्मन ने उमर के मुंह पर थूक दिया। उमर ने थूक पोंछ लिया और उस दुश्मन को कहा कि अब ठीक है, अब कल फिर से हम लड़ेंगे, आज बात खत्म हो गई। उस दुश्मन के कहा, तुम पागल हो! सात वर्षों में यह मौका तुम्हें पहली बार मिला है कि तुम मेरी छाती पर हो
और चाहो तो मुझे खत्म कर सकते हो। तुम मुझे छोड़ क्यों रहे हो? उमर ने कहा, मैंने एक निर्णय किया था कि लडंगा तभी तक जब तक शांत रहंगा। तम्हारे थकने के कारण मैं अशांत हो गया, इसलिए अब आज लड़ाई बंद कर देता हूं। इन सात वर्षों में मैं शांति से लड़ता था, लेकिन तुमने मेरे ऊपर थूक दिया और क्रोध आ गया मुझे, अब अशांति में तुम्हारी हत्या करूं तो वह ठीक नहीं होगा। सात वर्षों तक कोई शांति से युद्ध में लड़ सकता है? लड़ सकता है! हम कृष्ण जैसे आदमी को जानते हैं, युद्ध के मैदान में खड़ा है, लेकिन भीतर जिसकी शांति में जरा भी फर्क नहीं है। लेकिन हमने इस विरोधी दिखने वाली बात को आसान बना लिया, दो रास्ते निकाल लिए। एक तो हमने कहा कि जो अशांत हैं वे दुनिया की फिक्र करें, जो शांत हैं वे दुनिया से हट जाएं। इस तरह हमने दुनिया को दोहरा नुकसान पहुंचाया।
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