SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत का भविष्य खींच रहा है। कहीं भी बुद्धिमान आदमी हो आज नहीं कल अमेरिका चला जाएगा। उसकी भी मजबूरी है । क्योंकि आज उसके पास सबसे ज्यादा सुविधा है, सबसे ज्यादा संपन्नता है। लेकिन उसके बच्चे आगे बढ़ाने से इनकार कर रहे हैं। उसके बच्चे यह पूछ रहे हैं कि सुविधा, संपन्नता का करेंगे क्या? अब यह बड़े मजे की बात है सदा बच्चों ने पूछा था कि गरीबी कैसे मिटे ? आज अमेरिका के बच्चे पूछ रहे हैं कि अमीरी कैसे मिटे ? यह कभी सोचा भी नहीं था कि बच्चे यह पूछेंगे कि अमीरी कैसे मिटे ! यह प्रॉब्लम भी किसी दिन उठेगा। क्योंकि बच्चे यह कह रहे हैं कि तुम्हारी अमीरी से तुम्हें कुछ मिला तो नहीं । माना तुम्हारे पास मकान अच्छा है, कार तुम्हारे पास अच्छी है। तुम एयर कंडीशंड कमरे में हो। तुम्हारे पास बाथरूम अच्छा है, तुम्हारे पास साबुन अच्छी है । सब तुम्हारे पास अच्छा है। भोजन अच्छा, कपड़े अच्छे । बाकी तुम्हें मिला क्या जिंदगी में ? तुम्हें जिंदगी में कुछ मिला नहीं। तो हम बिना बाथरूम के रह लेंगे, बिना नहाए रह लेंगे, गंदे कपड़े में रह लेंगे। साबुन हमारे पास नहीं होगी, परफ्यूम हमारे पास नहीं होगा। पसीने की बदबू आएगी। लेकिन हम जिंदगी को जीना चाहते हैं । हम तुम्हारे इस ढांचे में फंस कर मरना नहीं चाहते। यह कभी सोचा भी नहीं था कि बच्चों को पसीने की बदबू जो है, वह प्रीतिकर लगेगी। लग भी नहीं सकती थी, क्योंकि सुगंध बहुत मुश्किल मामला था पुरानी दुनिया में। कभी कोई सुगंधित हो सकता था। बाकी तो सबको पसीने की बदबू थी। आज अमेरिका के बच्चे को पसीने की बदबू बेहतर लग रही है बजाए परफ्यूम के । वे कहते हैं, परफ्यूम धोखा है। असली शरीर की गंध चाहिए। धोखा इतना लंबा हो गया कि असली शरीर की गंध को बेहतर मानता है। नहाने से इनकार है, कपड़े बदलने से इनकार है। गंदगी सुखद है, क्योंकि वह जीवन है । और संपत्ति नहीं चाहिए। अभी बर्कले यूनिवर्सिटी के लड़कों ने एक नई राल्स रॉयस गाड़ी खरीद कर, नई गाड़ी खरीद कर चंदा करके और कैंप्स के बीच में रख कर आग लगाई। क्योंकि यह सिंबल है धन का, धन नहीं चाहिए। किसी दूसरे की गाड़ी नहीं है, खुद चंदा करके यह गाड़ी लाकर कैंप्स के बीच में रख कर आग लगा कर होली मनाई। अब ये कारें नहीं चाहिए। आदमी वापस पैर पर लौटना चाहिए। क्योंकि पैर से चलने का सुख ही और था । पैर से चलने वालों को बिलकुल पता नहीं । भारी दुखी ! और जब पास से कार गुजर जाती है तो आत्मा पर ऐसा संकट आता है जैसा कभी नहीं आता। लेकिन जहां कार हो गई, अत्यधिक हो गई, वहां पैर से चलने का वापस सुख लौटना चाहिए। और मजा यह है कि पैर से कार तक जाना बहुत आसान मामला था, कार से पैर तक आना बहुत कठिन मामला है। बहुत कठिन मामला है। जद्दोजहद का मामला है। ज्यादा जटिल है। इधर मैं जैसा देखता हूं वह यह कि परिस्थिति, संस्था, समूह, समाज, राज्य, बदल कर हमने देख लिए हमने पांच हजार सालों में। मेरी उत्सुकता नहीं है। मेरी उत्सुकता निपट व्यक्ति में है। सीधे व्यक्ति में है। कुछ उसके लिए कर सकूं तो ठीक। शायद उसके लिए होते होते समूह में फैल जाए तो अलग बात है। अगर किन्हीं मित्रों को उत्सुकता है कि मेरी बात ज्यादा लोगों तक फैले, तो उन्हें मेरी दृष्टि समझकर ही काम में लगना पड़ेगा। Page 123 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy