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भारत का भविष्य
भूख बड़ा मामला है, सिर्फ रोटी भूख नहीं। जिस दिन आप रोटी पूरी कर देंगे, उस दिन सेक्स भी भूख है। और अगर यह बात गलत है कि कुछ लोगों के पेट में रोटी पड़े और कुछ लोगों के न पड़े, तो कुछ लोगों का सेक्स ज्यादा ढंग से तृप्त हो और कुछ का न तृप्त हो, यह कब तक चलने देंगे? और अगर यह सही है कि सबको एक जैसे मकान रहने को मिलने चाहिए कि कोई महल में रहे कोई झोपड़ी में, तो यह बात कब तक ठीक रहेगी कि किसी को सुंदर स्त्री मिल जाए और किसी को कुरूप मिले। यह कैसे बर्दाश्त किया जा सके ? इसको लाजिकल कनक्लूजन तक ले जाने की जरूरत है। तब आपको पता चलेगा कि जो आप कर रहे हैं उसका क्या मतलब होता है? यह कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है कि आपके पास एक सुंदर स्त्री है और मेरे पास नहीं है। तो आप मेरा शोषण कर रहे हैं। निश्चित है, क्योंकि जो स्त्री मेरे पास होनी थी वह मेरे पास नहीं, आप कब्जा किए बैठे हैं। तो कुछ बंटवारा होना चाहिए, कुछ न कुछ शेयरिंग होनी चाहिए। कुछ ऐसा होना चाहिए कि सब काम, एक दिन वह आपकी स्त्री हो एक दिन मेरी भी हो। नहीं तो क्या उपाय है। या वैसी दूसरी स्त्री मुझे मिलनी चाहिए।
मकान तो आसानी से हम बना दें, एक से भी बन सकते हैं किसी दिन । लेकिन हम एक सी स्त्रियां कहां बना पाएंगे? तो फिर शेयरिंग पर इंतजाम करना पड़ेगा। तो हम पूरे समाज को एक, एक जैसा आज बंटवारा कर रहे हैं धन का, वैसा हमें कल कामवासना के लिए बंटवारा, ठीक वैसा ही बंटवारा करना पड़ेगा। लेकिन मकान तो जिद नहीं करता है। क्योंकि मकान कहता है कैसे ही बना लो। वह स्त्री तो जिद करेगी कि माना की तुम वंचित हो रहे हो लेकिन मैं तुम्हारे साथ प्रेम करने को राजी नहीं । इसको हमें कहना पड़ेगा, यह स्त्री अनैतिक है। क्यों यह एक व्यक्ति को अपना प्रेम देने को कहती है और दूसरे को नहीं देती । व्यक्ति समान हैं।
क्या करिएगा क्या? आप ज्यादा जटिल तलों पर उलझेंगे फिर । अभी तल बहुत साधारण हैं। और जटिल तल जो हैं वे चीजों को बुरी तरह तोड़ जाएंगे। स्त्रियों को बदलने के मूवमेंट हैं, ग्रुप हैं, क्लब हैं, जहां पति-पत्नियां इकट्ठे हो रहे हैं और पत्नियों को बदल कर ताकि किसी को कोई दंश न रह जाए मन में । मगर यह चेतना को नीचे गिराएगा कि ऊपर ले जाएगा। इससे आदमी की आत्मा आकाश में उड़ेगी कि और जमीन में दब जाएगी। क्या होगा क्या उसका ? उसका आखिरी फल क्या हो सकता है। मगर यह हम सब सोचते नहीं । समाज-सुधारक जिद में होता है। एक मसले को पकड़ता है उसकी पूरी चैन को नहीं। वह कहता है इस आदम के पास कपड़ा नहीं, इसके पास कपड़ा होना चाहिए। बस इतना पकड़ लेता है। लेकिन इस तर्क का पूरा फल क्या है ? इस तर्क की पूरी अंतिम नियति क्या होगी ? इस आदमी के पास आप जैसी आंख नहीं है वह भी होनी चाहिए। क्यों नहीं होनी चाहिए? यह आदमी आज नहीं कल कहेगा कि किसी आदमी के पास प्रतिभा हो और मेरी बुद्धि जड़ हो, यह नहीं चलेगा। बुद्धि का समान बंटवारा होना चाहिए। और आज नहीं कल हो सकता है। कोई कठिनाई नहीं है। अब इंप्लीमेंटस तो हैं कि हम बच्चों को जिनके पास थोड़ी ज्यादा प्रतिभा है उनको थोड़ा काट-छांट दें, उनके मस्तिष्क में थोड़े हार्मोस कम कर दें, थोड़ी नसें काट दें, थोड़ी नर्वस सिस्टम उनकी नीचे उतार दें, तो वे समान लेविल पर आ जाएं।
अगर यह बात सच है कि एक आदमी के पास ज्यादा धन नहीं होना चाहिए तो यह बात क्यों सच नहीं कि एक आदमी के पास ज्यादा प्रतिभा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि वह प्रतिभा का शोषण करेगा। तो रास्कल और मार्गन
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