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________________ भारत का भविष्य हम उसकी उम्र बड़ी कर लें। अब चिकित्सक के सामने सवाल है सारी दुनिया में और सभी मेडिकल क्रांफ्रेंसस में वह सवाल उठता है कि क्या आपको किसी आदमी को उसकी इच्छा के बिना जिंदा रखने का हक है ? अब एक आदमी सौ साल का हो गया, अब मैं मरना चाहता हूं। मैं मरना चाहता हूं लेकिन कोई सरकार मुझे आत्महत्या की आज्ञा नहीं देती। क्योंकि वह कानून तब बनाया गया था जब कोई सौ साल तक जीता नहीं था । और तब किसी आदमी को आत्महत्या कर लेना समाज के लिए बहुत फिजूलखर्ची थी असल में। अगर एक आदमी को हमने तीस साल तक बड़ा किया, तो समाज ने तीस साल तक उस पर खर्च किया, भोजन दिया, मकान दिया, शिक्षा दी, सारी मेहनत की, वह आत्महत्या कर लेता है। इसका मतलब यह है कि जिस व्यक्ति को हमने तीस साल तक मेहनत की वह बीच में खत्म हो जाता है, तो समाज इसकी आज्ञा नहीं दे सकता था । तो वह आत्महत्या की आज्ञा कैसे दे ? उसका मतलब वह तो खतरनाक आज्ञा है । कोई भी आदमी तैयार होने के बाद आत्महत्या कर ले तो इतनी सारी मेहनत समाज की बेकार गई। लेकिन अब सौ साल का एक आदमी हो गया, मैं सौ साल का हो गया, मैं मरना चाहता हूं, नहीं जीना चाहता। कोई सरकार मुझे आज्ञा देने को तैयार नहीं। क्योंकि उसके नियम पुराने हैं। और चिकित्सक मुझे सहायता नहीं कर सकता मरने में, अगर मैं मर रहा हूं तो वह मुझे जिलाए रखने की कोशिश करेगा। अभी सारी दुनिया में जिनकी उम्र ज्यादा हो गई उन लोगों का कहना है कि हमें मरने का सुविधापूर्ण हक होना चाहिए। यह हमारा निर्णय होना चाहिए। और चिकित्सक भी पूछते हैं कि क्या यह नैतिक है कि एक सौ या एक सौ बीस साल के आदमी को आक्सीजन की नली लगा कर जिंदा रखना, क्या नैतिक है? क्योंकि उस आदमी को जीवन में कुछ भी नहीं बचा है सिर्फ जीना है। भारी बोझ होगा इसके लिए । पर क्या हम इसकी नली से आक्सीजन जाना बंद कर दें, उसको मरने में सहयोगी हों, क्या वह नैतिक होगा ? जब भी हम बाहर कोई बदलाहट कर लेते हैं और मनुष्य की अंतरात्मा और नैतिकता और उसके अंतर- बोधो में कोई अंतर नहीं होता, तब तक हम नये सवाल खड़े करते चले जाते हैं। और नये सवाल पुराने से बदतर भी हो सकते हैं। क्योंकि ज्यादा कांप्लेक्सीटी के तल पर होते हैं। पुराना जो है वह सरल तल पर होता है सवाल। जब हम उसको बदल लेते हैं और नया सवाल खड़ा करते हैं तो वह ऑन ए न्यू लेयर कांप्लेक्सीटी हो गया, वह ज्यादा जटिल होगा। उसको हल करने में ज्यादा मसले गहन हो जाएंगे। कोई आदमी आत्महत्या न करे यह सरल तल की उलझन है। लेकिन आत्महत्या करने का हक देना बहुत जटिल उलझन है। क्योंकि फिर आप कैसे तय करिएगा कि कौन न करे ? चलिए एक आदमी कहता है मैं सौ साल में... । निन्यानबे वाला कहता है कि अगर सौ साल वाला आत्महत्या कर सकता है तो निन्यानबे वाले को क्यों हक न हो? लेकिन फिर उन्नीस साल वाले का क्या कसूर है अगर वह मरना चाहता है? यह ज्यादा जटिल मामला होगा। वह बहुत सरल मामला था कि कोई आत्महत्या न करे। एक सरल नियम था । कोई करने को आमतौर से उत्सुक भी नहीं था । कभी कोई उत्सुक भी होता था तो उसे रोका जा सकता था। लेकिन वह रुकावट मौत के खिलाफ थी। अगर हम आज्ञा देते हैं कि...आत्महत्या व्यक्ति की स्वतंत्रता का हक तो है ऐसे। क्योंकि अगर व्यक्ति ठीक से पूछे तो वह कह सकता है कि मरने का हक मेरी निजी स्वतंत्रता है और मुझे जबरदस्ती जिलाने वाले आप कौन हैं? यह किसी का हक नहीं है। Page 119 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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