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________________ भारत का भविष्य मानता हूं कि कुछ लोग चाहिए जो इस सत्य को ठीक से समझना शुरू करें कि क्रांति की बातचीत कुछ कर पाते हैं या नहीं कर पाते हैं? और एक और मजे का सूत्र है कि जब तक किसी चीज का अभाव होता है तब तक हमें मालूम पड़ता है कि अभाव बहुत महत्वपूर्ण है। जैसे ही वह अभाव भर जाता, वह तो गैर-महत्वपूर्ण हो जाता है, उसका मूल्य खत्म हो जाता है। उसका मूल्य तत्काल खत्म हो जाता है। अब जैसे कि जब तक रोटी नहीं तब लगता है रोटी बहुत महत्वपूर्ण है, रोटी मिल गई तो वह बेकार हो जाती, वह बात ही खत्म हो जाती है। यह भी खयाल नहीं रह जाता कि कभी वह नहीं थी। तो उसका न होना बड़ा महत्वपूर्ण था, वह समाप्त हो गई बात। और आदमी को रोटी मिली कि तब उसके दूसरे सवाल शुरू होते हैं। तब उसके दसरे सवाल शरू होते हैं, असली सवाल शरू होते हैं। वे असली सवाल जो हैं वे उसको और कठिनाई में डाल जाते हैं या उलझाव में डाल जाते हैं। यह जरा सोचने जैसा है। अब जैसे कि पचास-साठ साल से जो भी वैभवशाली देश हैं वे सोच रहे हैं कि आज नहीं कल, आदमी की तकलीफ सदा की यह रही, तब तकलीफ पहले यह थी कि आदमी को रोटी कैसे मिले? वह रोटी मिलनी शुरू हो गई। मकान कैसे मिले? वह मिल गया। अब तकलीफ अनुभव होनी शुरू हुई पचास साल से कि आदमी को श्रम करना पड़ता है, यही असली तकलीफ है। तकलीफ ही यही है। और यह बेहूदी बात है कि आदमी को ी के लिए श्रम करना पडता, जीवन बेचना पडता। समय बेचना. श्रम बेचना. जीवन बेचना है। अगर मैं अपनी रोटी के लिए रोज छह घंटे बेचता हूं, तो मैं छह घंटे अपनी जिंदगी बेचता हूं। जिंदगी भर में अगर मुझे जीना है अस्सी साल तो बीस साल तो मैंने रोटी खरीदने में बेच दिए। या कहें कि मैंने एक चौथाई जिंदगी रोटी कमाने में गंवाई, या यूं कहें कि मैंने अपनी एक चौथाई आत्मा जो थी वह रोटी के पलड़े पर रख दी। तो यह कहना चाहिए कि अशोभन। समाज तो ऐसा होना चाहिए जहां व्यक्ति को रोटी के लिए, तन के लिए आत्मा को न बेचना पड़े। तो जो समझदार लोग हैं वे यह कहते रहे। अब हालत यह आ गई कि अब हम मशीन तैयार कर लिए हैं, आदमी को श्रम से मुक्त किया जा सकता है। लेकिन नये सवाल खड़े हो गए हैं कि आदमी को श्रम से मुक्त किया तो आदमी वह जो खाली है करेगा क्या? संभावना यह है कि वह हत्याएं करेगा, चोरी करेगा, बदमाशी करेगा, शराब पीएगा, एल एस डी लेगा, मारीजुआना लेगा, यह करेगा। पर इसका कभी भी उनको खयाल नहीं था जिन्होंने कहा कि हम जिस दिन आदमी को श्रम से मुक्त कर देंगे उसकी आत्मा पूर्ण मुक्त हो जाएगी। फिर वे लोग सोचते थे कि वह काव्य करेगा, चित्र बनाएगा, पेंटिंग्स करेगा, कालिदास पैदा होंगे, शेक्सपियर पैदा होंगे हजारों की संख्या में, घर-घर रवींद्रनाथ हो जाएंगे, बुद्ध और महावीर जगह-जगह पैदा हो जाएंगे। क्योंकि आदमी को सुविधा होगी। और उसकी आत्मा पहली दफा मुक्त होगी तो बहुत रूपों में प्रकट होगी। लेकिन मामला यह दिखाई पड़ता है कि वह बुद्ध कभी-कभी एकाध पैदा होता था वह भी शायद पैदा न हो। क्योंकि जिस आदमी को हम श्रम से मुक्त कर रहे हैं, श्रम से मुक्त होते ही उसने बहुत सी इच्छाओं को सदा पोस्टपोन किया था, श्रम की वजह से वह नहीं कर पाता था। उसका भी मन था कि अगर सौ पत्नियां वह भी रख सके तो रखे। कोई वजह नहीं थी कि शाहजहां क्यों रखे और वह क्यों न रखे। शाहजहां इसलिए रख सकता Page 115 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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