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________________ ( अनुक्रम १७२ २१. सत्यशरण सदैव सुखदायी २२. दुःख का मूल : लोभ २३. सुख का मूल : सन्तोष २४. सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : १ २५. सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २ कुद्ध कुशील पाता है अकीर्ति २७. संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : ११ संभिन्नचित्त होता श्री से वंचित : २! २६. सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : १ ३०. सत्यनिष्ठ पाता है श्री को : २ ३१. कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते यलवान मुनि को तजते पाप : १ ३३. यलवान मुनि को तजते पाप : २ यलवान मुनि को तजते पाप : ३ ३५. हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३७. अरुचि वाले को परमार्थ-कथनः किताप ३८. परमार्थ से अनभिज्ञ द्वारा कथनः मिलाप विक्षिप्तचित्त को कहनाः विलाप ४०. कुशिष्यों को बहुत कहना भी विलास २३६ २५५ २७७ ३०० ३२४ ३६. ३४७ ३६५ ३८४
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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