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________________ आनन्द प्रवचन : भाग ६ वस्तुतः चित्त की एकाग्र स्थिति में लाए बिना उसकी शक्तियों से अभीष्ट लाभ नहीं उठाया जा सकता। जो मनुष्य अपने चित्त को एकाग्र कर लेता है वह किसी भी सत्कार्य में अपनी शक्तियों का एक साथ प्रयोग कर सकता है। मनुष्य का एकाग्रचित्त उसकी उन्नति, जीवन के विकास का एकमात्र अधार माना गया है। जिस प्रकार आतशी शीशा सूर्य की किरांपों को एकाग्र कर किसी चीज को भी जला देने की शक्ति सम्पादित कर लेता है, उसी प्रकार एकाग्रचित्त अपनी एकत्रित शक्तियों द्वारा कोई भी प्रयोजन सिद्ध कर सकता है। संसार में जितने भी व्यक्ति उन्नति के शिखर पर चढ़ सकने में सफल हुए हैं, वे सदाचित्त की एकाग्रता से ही हुए है, यदि चित्त को विक्षिप्त और चंचल बनाकर वीच-बीच में अपने अभीप्सित कार्य को छोड़कर, दूसरे-तीसरे कार्य में लग जाते तो उनका कोई भी कार्य पूरा न होता, क्योंकि बिखरी चित्तवृत्तियों द्वारा कभी किसी कार्य को पूरा का सकना संभव नहीं है। बिखरा और चंचल चित्त मनुष्य की सारी क्षमताएं बिखेरकर उन्हें निर्बल और निर्रथक बना देता है। अतः चित को किसी एक लक्ष्य, किसी एक वस्तु या कार्य प्रवृत्ति में केन्द्रित कर देने से उसकी एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता ही समस शक्तियों का स्त्रोत है। सूर्य की किरणों में भयंकर आग है, किन सारे संसार में फैली होने के कारण वे किसी चीज को गर्म तो कर देती हैं, लेकिन जला नहीं पातीं। इसका कारण यह है कि वे (किरणे) सूर्य की अग्नि का थोड़ा-थोड़ा अंश लेकर अलग-अलग छितरी रहती हैं, किन्तु जब ये किसी उपाय द्वारा एकाग्र करके प्रमुक्त की जाती हैं, तो तुरंत ही भयंकर अग्नि का रूप धारण कर लेती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर किसी उपाय से सूर्य की बिखरी किरणों को एक स्थान पर एक करके उन्हें जिस दिशा में भी संधान कर दिया जाएगा, उस दिशा की सारी वस्तुओं को वे जलाकर खाक बना देंगी। इसी प्रकार चित्त की शक्तियों के एकीकरण द्वारा उसएकाग्र करके कोई महत्तम कार्य किया जा सकता है। निष्कर्ष यह है कि जो व्यक्ति किसी उत्तम उद्देश्य के लिए अपने चितैकाय की सम्पूर्ण शक्ति से काम करता है, उसका वह वतर्य कभी निष्फल नहीं जाता। बन्दूक चलाने वाले बन्दूक की गोली में शक्ति को केल्लित कर देते हैं, जिससे वह गोली चार आदमियों को छेदकर पार निकल जाती है। पित्त की एकाग्रता की शक्ति उससे भी कई गुना अधिक है। अमेरिका के एक महान् विद्वान विलियम ए० आवरी अपना अनुभव लिखते हैं कि स्कूल में पढ़ते समय मुझे लेटिन भाषा का एक पाट याद करने में दो घंटे लग जाते थे। मैं अपने चित्त को एकाग्न करके ध्यानपूर्ववत उसी पाठ को कम समय में याद करने लगा। प्रत्येक बार पांच-पांच मिनट कम करतेश अंत में मैं उसी पाठ को आध घंटे में बाद करने लगा। इस तरह वह चित्त की एकाग्रता का महत्त्व समझ गया और आगे
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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