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अरुचि वाले को परमार्थ-कथन : विलाप ३३१
श्रेष्ठता के सम्बन्ध में कहा था- "वह उपदेश उत्तम नहीं, जिसे सुनकर श्रोता लोग बाते करते एवं वक्ता की तारीफ करते जाएं, बल्कि उत्तम तो वह उपदेश है, जिसे सुनकर वे विचारपूर्ण एवं गम्भीर होकर जाएं, तथा उस पर मनन के लिए एकान्तवास की तलाश करें। " आजकल के उपदेशकों की आलोचना करते हुए पाश्चात्य उपदेशक "अलजर' ने कहा है— हम उपदेश देते हैं—टनभर, श्रोत्रा सुनते हैं— मन भर और ग्रहण करते हैं— कणभर । "
जो उपदेशक द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव पात्र और परिस्थिति न देखकर योग्य श्रोताओं के सामने ऊंची-ऊंची दर्शन और अध्यात्म की बातें क्लिष्ट और दुरूह भाषा में परोसता है, वह उनकी दृष्टि में तौहीन कराता है, श्रोता लोग ऊबकर उसे ही गालियां देने लगते हैं, इसके विपरीत प्रसंगवश सीधी सरल भाषा कही हुई बात श्रोताओं के गले उतर जाती है और वे उसे ग्रहण भी कर जाते हैं, उस वक्ता की भी प्रसंसा करते हैं, जो उन्हें कठिन बात को सरल भाषा में समझा देता है।
कुमुदचन्द्र नाम के विद्वान जो बाद में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर नाम से जैन जगत् में विख्यात हुए, दिग्विजय के लिए भारत भर में घूम रहे थे। बड़े-बड़े दिग्गज विद्वान् उनसे पराजित हो गए। एक जैनाचार्य वृद्धवादी उन्हें जंगल में मिले। नाम आदि का परिचय पाकर कुमुदचन्द्र ने उन्हें चर्चा (शास्त्रार्थ) के लिए आह्वान किया। वृद्धवादी आचार्य ने पूछा – “मध्यस्थ कौन होगा, जो जय-पराजय का निर्णय दे सके?" कुमुदचन्द्र ने उत्तर दिया" अजपाल (भेड़-बकरियाँ चराने वाले) ही यहां मध्यस्थ होंगे। "
शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम विद्वान कुमुदचन्द्र लगभग २०-२५ मिनट तक धारा प्रदाह संस्कृत में बोलते रहे। उनकी बात चरवाहों के कुछ भी पल्ले नहीं पड़ी, अतः उन्होंने उन्हें रोककर वृद्धवादी आचार्य को बोलने के लिए कहा। देश-काल-पात्रज्ञ आचार्य ने एक पद्य चरवाहों की सरल भाषा में सुनाया-
काली कांबल अरणीसट्ठ, त्राचे भरियो दीवड़ मट्ठ । एवड़ पड़ियो नीले झाड़, अगर किसो है स्वर्ग विचार ।
अर्थात् जिनके पास ओढ़ने के लिए काला कम्बल है, आग जलाने के लिए अरणी की लकड़ी है, भूख-प्यास मिटाने के लिए छाछ से भरी दीवड़ी है, और जिनका एवड़ (भेड़-बकरियों का दल) हरे-भरे जंगल में छायादार पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा है, ऐसे अजपाल वस्तुतः स्वर्ग का सा आनन्द ले रहे हैं, क्योंकि इनके लिए इससे बढ़कर स्वर्ग और क्या हो सकता है ?
यह सुनकर सारे अजपाल खुश हो गए और वृद्धवादी आचार्य को विजयी घोषित कर दिया।
१ अकाले विज्ञप्तं ऊषरे कृष्टमिव
- नीतिवाक्यामृत ११ / २६