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आनन्द प्रवचन भाग ६
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हो गया है, गुस्से से आग-बबूला हो गया है । परन्तु यहाँ कुपित का अर्थ केवल इतना ही लेने पर इस जीवनसूत्र के साथ आगे चलकर संगति नहीं होगी। इस जीवनसूत्र में बताया है कि कुपित मनुष्य को उसकी स्थिरुबुद्धि छोड़ देती है । अब यदि कुपित का अर्थ सिर्फ, क्रोध से कुपित ही किया जाएगा, तब काम से कुपित, मोह से कुपित, मद, मत्सर और लोभ से कुपित व्यक्ति भी बुद्धिष्ट होते देखे जाते हैं। अतः बुद्धिभ्रष्टता का सम्वन्ध केवल क्रोधकुपित से नहीं रहता, अपितु काम, मोह, लोभ, मद, मत्सर आदि से कुपित के साथ भी है। इस कारण कुपित का अर्थ व्यापक लिया जाना चाहिए।
वास्तव में कुपित का अर्थ उत्तेजित होना, भड़क जाना, अतिरेक हो जाना, अतिमात्रा में बाहर प्रकट हो जाना ही ठीत प्रतीत होता है। फिर वह उत्तेजना या अतिरेक क्रोध के कारण हो, काम के कारण हो, लोभ, मोह या मद आदि मनोविकारों के कारण हो, वह सीधा शुद्ध एवं स्थिरबुद्धि पर चोट पहुँचाता है। इन मनोविकारों में से किसी के भी कुपित या उत्तेजित हो जाने पर उसके चिन्ह बाहर शरीर के अवयवों में प्रकट रूप से दिखाई देते हैं। जैसे कि कप रहीम ने कहा है
खैर, खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रीति, मदपान ।
रहिमन दाबै ना दबै, कानात सकल जहान । ।
सचमुच काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि मनोविकार मनुष्य की सात्त्विक एवं शुद्धबुद्धि को धकेल देते हैं। जब मनुष्य इनके वश में होता है, तब वह प्रत्यक्ष राक्षसतुल्य हो जाता है। उसकी विकबुद्धि उत्तेजना से आक्रान्त हो जाती है। इन मनोविकारों के क्षणिक आवेग में लोग प्रायः ऐसे मूर्खतापूर्ण जघन्य कृत्य कर बैठते हैं, जिनके लिए बाद में उन्हें सदैव पश्चात्तगर एवं आत्मग्लानि का अनुभव होता रहता है। जैसे शराब के नशे में पागल बना हुआ मनुष्य छिपा नहीं रहता। मद्यपान करने की साक्षी उसका चेहरा, आँखें, बोली, चालढाक एवं चेष्टाएँ दे देती हैं। उसी प्रकार किसी भी मनोविकार की उत्तेजना से ग्रस्त होने पर मानव उसके चेहरे आँखों, बोली, चाल-ढाल, व्यवहार एवं चेष्टाओं से देखा-परखा जा सकता है।
क्रोध से कुपित: अत्यधिक प्रकट
यह ठीक है कि क्रोध का प्रकोप होने पर मनुष्य को जल्दी पहचाना जा सकता है, क्योंकि क्रोध के आवेश में आदमी की प्रकृति और आँखें लाल हो जाती हैं, भौंहें तन जाती हैं, मुँह से गालियों तथा अपशब्दों की बौछार शुरू हो जाती है, कभी-कभी तोड़फोड़, हाथापाई और लड़ाई हो जाती है। इसलिए क्रोधावेश में ग्रस्त को ही लोग कुपित कहते हैं।
एक विचारक ने क्रोध के समय उत्तेजित होने के स्पष्ट चिन्हों का उल्लेख करते
हुए कहा है