SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हंस छोड़ चले शुष्क सरोवर २६६ स्वार्थी और परार्थी जीवन के पणिाम का अन्तर इस पर से समझा जा सकता है। वास्तव में स्वार्थपरता एक अपराध , जिसका दण्ड व्यक्ति को भोगना पड़ता है। एक चींटी कहीं से गुड़ का ढेला म गई। उसने उसे अपनी कोठरी में बंद करके रख दिया, स्वयं चुपचाप प्रतिदिन खा लेती, अन्य चीटियों को बिलकुल न देती। एक दिन रानी चींटी को पता लग गया। उसने सब चींटियों को उसकी कोठरी में घुसने का आदेश दिया। वे घुसकर उस चीटी वत सारा गुड़ छीनकर खा गई और चोरी के अपराध में उस स्वार्थी चींटी को बाहर किाल दिया। वह चींटी अपनी स्वार्थपरता के कारण जिंदगीभर अकेली मारी-मारी दुःत्रित होकर फिरती रही। अकेलेपन का कष्ट उसके स्वार्थीपन का बड़ा भारी दण्ड था। __दोनों में से एक जीवन चुन लीजिए संसार में उत्थान और पतन के दो मार्ग हैं, जो परस्पर विरोधी दिशाओं में चलते हैं। इनमें से एक को परमार्थ और दूसरे को स्वार्थ कहते हैं। इन्हें ही पुण्य-पाप, श्रेय-प्रेय, स्वर्ग-नरक, शान्ति-अशान्ति, रशंसा-निन्दा आदि के मार्ग कह सकते हैं। परमार्थी जीवन का परिणाम सुख-शान्ति पुण्य, श्रेय, स्वर्ग, प्रशंसा आदि हैं, और स्वार्थी जीवन का परिणाम है—दुःख, क्लेश, अशान्ति, पाप, प्रेय, नरक, निन्दा आदि। बन्धुओ ! मुझे विश्वास है, आप इन दोनों प्रकार के जीवनों में से महर्षि गौतम द्वारा त्याज्य एवं निन्ध बताया हुआ स्वार्थी जीवन अपनाना पसन्द न करेंगे। आप उनके द्वारा इसी जीवनसूत्र से संकेतित परमार्थी जीवन अपनाना ही पसन्द, करेंगे, जिससे आपका वर्तमान और भविष्य दोन ही उज्ज्वल एवं सुखमय बनेंगे।
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy