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________________ २० आनन्द प्रवचन : भाग ६ फिर उपलब्ध धन की वृद्धि के लिए पुरुषार्थ करता है। इसीलिए लाभ के साथ लोभ की मनोवृत्ति को भगवान महावीर ने जुड़ी हुई प्ताई है जहा लाहो तहा लोहो, माहो लोहो पवड्ढइ । दो मास कयं कज्जं, कोडीग दिन निट्ठियं ।। जहां लाभ होता है वहाँ लोभ होता है। लाभ से लोभ बढ़ता है। कपिल को सिर्फ दो माशा स्वर्ण से काम था, परन्तु राजा के वचन का लाभ मिलने पर लोभ इतना आगे बढ़ गया कि करोड़ स्वर्ण मुद्राओं से सन्तृष्ट नहीं हुआ। एक पाश्चात्य विचारक Juvenal (जूवेनल) ने इसी बात का समर्थन किया "Avarice increases with the increasing pile of gold." --सोने का ढेर बढ़ने के साथ-साथ लोम भी बढ़ता जाता है। कपिल एक गरीब ब्राह्मण था। वह फौशाम्बी से श्रावस्ती जाकर अपने पिता काश्यप के मित्र इन्द्रदत्त उपाध्याय से विद्याधयन करता था। परन्तु जिस सेठ के यहाँ भोजन का प्रबन्ध था, उसकी दासी के साथ उसका प्रेम हो गया। दासी ने एक दिन उत्सव में जाने के लिए वस्त्र, आभूषण आदि ला देने का कपिल से आग्रह किया। परन्तु कपिल के पास धन था नहीं। दासी ने उसे उपाय बताया कि नगर के राजा को सर्वप्रथम जो आशीर्वाद देता है, उसे वह दो माशा सोना देता है, तो आप सबसे पहले जाकर राजा को आशीर्वाद दीजिए और दो गमशा सोना ले आइए। कपिल चाँदनी रात देखकर भोर होने का समय निकट जानकर आधी रात को घर से दौड़ता हुआ राजमहल की ओर चला पड़ा। उसे दौड़ते हुए देख सिपाहियों ने चोर समझकर पकड़ लिया। सुबह राजा के समक्ष पेश किया। राजा ने जब कपिल से आधी रात को भागते हुए जाने का कारण पूछा, तो उसने सारी बातें सच-सच कह दी। राजा उसकी सत्यवादिया से बात प्रभावित हुआ। उसने कपिल से कहा -“भूदेव! मैं तुम पर तुष्ट हूँ जो चाहे 1सो माँग लो, मैं दूंगा।" कपिल ने कहा- "अच्छा, ऐसी बात है, तो मैं एकान्त में जाकर विचार करके माँगूगा।" राजा ने उसे अशोक वाटिका भेज दिया। कपिल वहाँ बैठकर सोचने लगा-'दो माशा सोने से क्या होगा? 4. वस्त्र एवं गहने भी नहीं बनेंगे। राजा ने खुले दिल से माँगने को कहा है, तो सौ स्वर्णमुद्राएँ क्यों न माँग लूं।' फिर सोचा-'रथ, घोड़े आदि सब सुख साधन १०० स्वर्णमुद्राओं से नहीं होंगे, अतः हजार सोनये माँग लूं। पर हजार सोनयों से भी क्या होगा ? इनसे तो बिवाह, सैर सपाटे, वाग बगीचा, महल आदि नहीं होंगे। एक करोड़ माँग लूँ। परन्तु इतने से भी सारा काम नहीं होगा, अतः हजार करोड़ माँग ।।' यो लाभ के साथ-साथ लोभ बढ़ता ही गया। परन्तु फिर किसी पूर्व पुण्योदय #शुभ विचार की बिजली हृदय में कौंधी, मोचा-कैसी है यह लोभ की विडम्बना। मैं तो सिर्फ दो माशा सोने के लिए आया
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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