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________________ ११८ आनन्द प्रवचन भाग ६ की उपासना से मनुष्य का जीवन शान्त, स्वस्था पुखी नहीं रह सकेगा। उसे आध्यात्मिक श्री का सहारा लेना अनिवार्य होगा, अन्यथा । वह स्वयं अनेक दुखों से संतप्त और जीवन से असन्तुष्ट रहेगा। यों तो त्यागीवर्ग को भी शरीर रक्षा और धर्म साधना के लिए भौतिक साधनों भोजन, वस्त्र, पात्र, मकान, पुस्तव आदि तथा अध्यन के साधनों की आवश्यकता रहती है, जिनकी पूर्ति गृहस्थ वर्ग अपनी भौतिक श्री के माध्यम से इन सब साधनों को अपनाकर करता है। यद्यपि ग्रागीवर्ग गृहस्थवर्ग की तरह भौतिक श्री से प्राप्त इन धर्मोपकरणों या भोजनादि साधने में आसक्त नहीं होता, उसे भौतिक श्री की चिन्ता नहीं होती, केवल आध्यात्मिक श्री की सुरक्षा की लगन होती है तथापि शरीरादि भौतिक साधनों का वह विवेकपूर्वक निर्वाह करता है। अगर त्यागी वर्ग के पास आध्यात्मिक श्री का दिवाला निकल जाए तो उसका कुछ भी मूल्य नहीं रहता, न उस गृहस्थ का मूल्य रहता है, जिसके पास भौतिक श्री का दिवाला निकल जाता है। 'श्री' के लिए सारे संसार का प्रयत्न आज दुनिया में त्यागीवर्ग के सिवाय प्रायद ही कोई व्यक्ति हो जो भौतिक श्री सेवंचित रहना चाहता हो। श्री के लिए लोग देवी-देवों की मनौती, पूजा किया करते हैं, अनेक प्रकार के जप-तप, ग्रहशान्ति-पाठ एवं प्रयत्न किया करते हैं। आज के भौतिकवादी मानव का ख्याल है कि श्रीसम्पन्न व्यक्ति सर्वगुणों से युक्त हो जाते हैं, परन्तु ऐसा विचार एकांगी और भ्रमयुक्त है। यह तो 'श्री' के सदुपयोग और दुरुपयोग पर निर्भर है। 'श्री' तो अपने आप में एक शक्ति है । यह तो उपयोगकर्ता पर आधारित है कि वह 'श्री' शक्ति का उपयोग किस दिशा में और कैसे करता है ? एक पाश्चात्य विद्वान् एल-एस्ट्रेंज (L'Estrange) लिखता है— "Money does all things, for it gives and it takes away, it makes honest men and knaves: fools and philosophers and so on to the end of the chapter." "धन सब कुछ करता है, क्योंकि यह देता है और यह लेता भी है । यह मनुष्यों को ईमानदार और धोखेबाज भी बनाता है, मूर्ख और दार्शनिक भी। और इस प्रकार यह जीवन के अध्याय के अन्त तक लगा रहता है। " राष्ट्र के लिए धन जीवन का रक्त है क्योंकि किसी भी राष्ट्र का कार्य धन के बिना चल नहीं सकता। नगर का कार्य भी गिना धन-धान्य के नहीं चल सकता। जैन शास्त्रों में जहां-जहां बड़े-बड़े नग के वर्णन आते हैं, वहाँ उनके साथ तीन विशेषण खासतौर से प्रयुक्त किये जाते है- 'रिद्धत्थिमिणसमिद्धे ।' 1. "Money is the life blood of the ration -Swift
SR No.091010
Book TitleAnand Pravachana Part 9
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1997
Total Pages415
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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