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• नेकी कर कुएँ में डाल!
[३३२] प्रात:काल में अगर कोई इनका नाम लेले तो भी बुरा माना जाता है।
प्रभात में उठते ही व्यक्ति 'जय राम जी की' किसी दूसरे के सामने बोलते हैं पर क्या कभी जय रावण की भी. कहते हुए सुना है? इसी प्रकार सुबह-शाम 'हरे कृष्णा हरे कृष्ण !!" की रट तो सभी लगाते हैं, पर कभी कोई हरे कंस! एक बार भी कहता है? नहीं, क्यों नहीं कहात्रा? इसलिये कि उन्होंने अपने जीवन में नेक कार्य नहीं किया। नीति और धर्म के अनुसार नहीं चले। जयकार केवल उसी का किया जाता है जिन्होंने अपने जधन को धर्म-पारायण बनाया, अहिंसा.
और सत्य के मार्गपर चले, अनीति और अनाचार का नाश करते हुए नीति और न्याय का प्रसार किया। तथा अपना समग्र जीवन अन्य प्राणियों की भलाई करते हुए व्यतीत किया।
संसार उन्हीं को स्मरण करता है, जिन्होंने बुराइयों में से भी अच्छाइयाँ खोजी और दुर्जनों के साथ भी सुजनता का व्यवहार किया। मैं सब को भला समझेंगा!
___महात्मा बुद्ध के पूरण नामक एक हीष्य ने सुना पर प्रांत में जाकर धर्म प्रचार करने की आज्ञा बुद्ध से माँगी।
महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य की जनता की परख करने के लिये पूछा - "वत्स! उस प्रान्त में बड़े क्रूर व्यक्ति रहते हैं! अगर वे तुम्हारी निन्दा करेंगे और तुम्हे दुर्वचन कहेंगे तो?"
"भन्ते! मैं यही सोचूँगा कि वे भले है जो मुझे पीट नहीं रहे है।"
"और अगर उन्होंने तुम्हें पीट दिया तो फिर तुम्हें कैसा लगेगा?' बुद्ध ने पुन: पूछा।
तब भी मैं उन्हे दयालु व्यक्ति मानूँगा। कि उन्होंने मुझे किसी शस्त्र से घायल नहीं किया अथवा जान से नहीं मारा।" पूरणा ने नम्रतापूर्वक अपने गुरुदेव को उत्तर दिया।
"पूरण! अगर वे सचमुच ही तुम्हतो जान लेने पर उतारू हो गए तो? बुद्ध का प्रश्न था।
"तब तो भगवन्! और भी अच्छा होगा। मैं समझेंगा कि यह रोगों का घर और नश्वर शरीर जल्दी ही धर्म प्रचार के काम में आ गया। मुझे संसार के दुखों को भी सहन करना नहीं पड़ेगा।"
शिष्य का उत्तर सुनते ही बुद्ध सन्तुष्ट स्किर बोले -
"शाबास वत्स! मुझे तुमसे ऐसे ही उत्तरों की आशा थी। अब तुम नि:संकोच होकर कहीं भी जा सकते हो। जो व्यक्ति किसी भी स्थिति में दूसरों को दोषी