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• नेकी कर कूएँ में डाल!
[३३०] बढ़िया भी दफनाई गई पर दोनों के नाम के साथ अच्छाई और बुराई अलग-अलग जुड़ी रही।
बंधुओ, इसीलिये हमारा कहना है नि सदा नेक कार्य करो और वह भी निस्वार्थ भाव से करो। यह जीवन तो क्षण-भार है। किसी भी दिन नष्ट हो जाएगा। इसके लिये किसी प्रकार का गर्व करना या अपने धन का अहंकार रखना, दोनों ही वृथा हैं। अनर्थकारी अहंकार
एक बार निजाम स्टेट में हमारा जातुर्मास हुआ। वहाँ एक सत्य घटना सुनने में आई थी। निजाम स्टेट के कलम कामक गाँव में एक अत्यन्त धनी गृहस्थ रहता था। उसके एक ही लड़की थी। इकलौती पुत्री होने के कारण पिता ने उसका सम्बन्ध करने के लिए बड़ी खोजबीन की, और का उसका रिश्ता पक्का किया।
लड़के वाले भी अत्यन्त सम्पन्न थे और संयोग से उनका भी लड़का एक ही था। रिश्ता कर लेने के बाद लड़के वालों के दिल में विचार आया - 'कौन जाने लड़की वाले हमारी इतनी बड़ी बारात की ठावस्था कर सकेंगे या नहीं?' । यह विचार आने पर लड़के के पिता ने पाव भर राई लड़की के पिता को भेजी। उसका अर्थ था - राई में जितने दाने, उतने ही बराती आएँगी।
समधी के यहाँ से आई हुई राई का अर्थ कन्या का पिता समझ गया और सोचने लगा - "वे लोग मुझे समझते क्या हैं? क्या मैं कोई ऐरा-गैरा हूँ जो उनकी बारात की व्यवस्था नहीं कर सकता।" आखिर उसने उत्तर देने के लिये पाव भर खस-खस भेज दी। जिसका मतलब था कि पाव भर राई जितने तो क्या, पावभर खस-खस जितने भी आ जाओ तो मैं सबको सम्हालने का दम रखता हूँ । उत्तर पाकर लडके वाले प्रसन्न हो गए।
उधर के लोग कहते थे कि विवाह के समय कन्या के पिता ने जैसी धूम-धाम से शादी की, हमने पहले कमी। वैसी होते नहीं देखी। दो माइल तक तो उसने रोशनी की ही व्यवस्था की थी।
लड़की की माता ने अत्यधिक खर्चे का बड़ा विरोध भी किया। कहा -- "अपने यहाँ धन है तो क्या इस तरह आग लगाने के लिए है?"
पर घर मालिक तो ताव में आर! हुए थे। घमंड में आकर सब धन पूँक दिया। हजारों व्यक्ति उस विवाह को देखने के लिये गए थे।
चातुर्मास काल में लोगों ने हमें भी वह मकान बताया। और कहा - "महाराज! यह मकान है खसखस भेजने वाले का। अब तो केवल एक वृद्धा इसमें रहती है और इस विशाल मकान के पत्थर बेच-बेचकर अपना गुजारा कर रही