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________________ . [३२७] आनन्द प्रवचन : भाग १ का स्वयं ही उपयोग करते हैं, उसका फिर किसी न किसी प्रकार से नाश ही होता है। एक गुजराती कवि ने मधुमकञ्ची का उदाहरण देते हुए यही बात सरल ढंग से समझाई है। कहा है : पाखी थई मधु कीघु, नथी खाधुं नथी दीधु, लुटनहारे लूटी लीधुं रे पामर प्राणी। चेते तो चेतावू तोने रे। पामर प्राणी॥ कवि ने कहा है - "मधुमकनी अनेक फलों का रस इकट्ठा करके उसे शहद के रूप में परिणत करती है। पर न उसे स्वयं खाती है और न दूसरों को ही खिलाती है। परिणाम यह होता है कि जब छत्ता विशाल हो जाता है और उसमें बहुत सा मधु इकट्ठा हो जाता है तो हिंसक मनुष्य आकर उसके नीचे अग्नि जला देते हैं और उसके धुएँ से सारी मक्खियों को उड़ाकर सारा शहद लूट ले जाते हैं।" "भर्ख प्राणी! अगर तु अपना भला चाहता है तो मधुमक्खी के समान केवल धन इकट्ठा करने में ही मत नह! उसको नेक कामों में लगा कर पुण्य संचय कर! मेरो तुझे यही चेतावनी है। चेत सके तो चेत जा!" बन्धुओ, आप समझ गए होंगे कि बादशाह का ने अपने जीवन में कितनी भयंकर भूल की। अगर वह चाहता तां अपने विशाल खजाने को नेक कार्यों में लगाकर पुण्य-कर्मों का संचय करने के साथ ही अपने नाम को सुनाम कर जाता। और लोग आज भी उसे दानी कर्ण, होरेश्चन्द्र, भामाशाह और जगडूशाह के समान आदर और प्रशंसा के साथ स्मरण करते। ____ आप कहेंगे कि उसे स्मरण ते। अभी भी सब करते हैं। पर नहीं, स्मरण करना उसी के लिए सार्थक है जिसे लोग नेक व्यक्ति के रूप में स्मरण करें, और श्रद्धा से उसके समक्ष नत-मस्तक हों। अन्यथा स्मरण तो रावण को भी किया जाता है। पर कैसे? अन्याय और अव्वाचार के प्रतीक के रूप में उसका पुतला जलाकर उसके नाम पर थू-थू करके। इस प्रकार का स्मरण करना किस काम का? स्मरण करना कहलाता है, महावीर, बुद्ध, कृष्ण, राम और ईसामसीह जैसे महापुरुषों का। नेकनामी का परिणाम फारसी कवि ने कुख्यात बादशाह का का जिक्र करने के बाद आगे कहा है : "नौशेरवां न मुर्द वेनामे ने को गुजाश्त।" नौशेरवां ईरान का अन्तिम अमिपूजक फारसी बादशाह था। वह भी अब इस दुनियाँ में नहीं है किन्तु उसकी कनामी और सुकीर्ति आज भी विद्यमान है। उस नेक बादशाह ने अपनी प्रजा का पालन संतानवत् किया। गरीबों की पुकार
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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