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• जन्माष्टमी से शिक्षा लो !
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श्रीकृष्ण की भक्तवत्सलता तथा पर-मुखनिवारण की भावना बड़ी जबर्दस्त थी। इसका कारण यही था कि वे प्रत्येक ! प्राणी के गुणों पर ही दृष्टिपात करते थे। अवगुणों की ओर देखना उनके स्वभाव में ही नहीं था ।
एक बार वे दल-बल सहित राजमार्ग से गुजर रहे थे। हजारों व्यक्ति उनके साथ थे। लोगों ने देखा कि उस सड़क के एक किनारे, मरी हुई कुतिया पड़ी थी। उसके शरीर से भयानक दुर्गन्ध आ रही थी।
लोगों ने उसे देखकर नाक-भौं सिकड़े और असह्य दुर्गन्ध के कारण दूर भागने लगे। किन्तु श्रीकृष्ण की दृष्टि जब उस पर पड़ी तो वे बड़ी शान्ति से बोले -
"अहो, इसके दाँत कितने सुन्दर हैं?"
कहने का अभिप्राय यही है कि श्रीकृष्ण जैसे महापुरुष ने एक मरी हुई दुर्गन्ध युक्त कुतिया को देखकर भी उसकी हिन्दा नहीं की तथा सड़क की सफाई करने वालों पर क्रुद्ध नहीं हुए। अन्यथा किसी और राजा की सवारी निकलते वक्त अगर ऐसा कुसंयोग बन जाता तो बेचारे हरिजनों की तो शायद प्राणों पर ही बन जाती। किन्तु कृष्ण सचे महापुरुष थे तथा अपने मन और वाणी पर पूर्णतया काबू रखते थे। इसलिये ही उन्हें गोपाल भी कहा जाता था। आपको मेरी यह बात सुनकर अटपटी लगी होगी कि गोपाल शब्द का वाणी से क्या सम्बन्ध है ? अतः मैं आपकी उलझन मिटाने का प्रयत्न करता हूँ।
गोपाल का अर्थ
गोपाल का साधारण तथा व्यावहारिक अर्थ माना जाता है गायों को पालने वाला और उन्हें चराने वाला पर गोपाल का वास्तोत्रेक अर्थ है :
"गां पालयति इति गोपालः ।"
अर्थ हैं। इसका महला अर्थ है प्राणी और दूसरा अर्थ
'गो' शब्द के दो
वाणी होता है। तो जो वाणी को अपने काबू में रखे वह गोपाल कहलाता है।
श्रीकृष्ण ने सदा वाणी पर संयम रूपा था जैसे कि एक-दो उदाहरण मैंने आपको अभी बताए हैं वे जब दूत बनकर दुर्योधन के पास गए तब उसकी कटूकियों सुनकर उत्तेजित नहीं हुए तथा सड़क पर तेज दुर्गन्ध फैलाने वाली कुतिया को देखकर भी क्रुध्द नहीं हुए। न उन्होंने क्रोध ही किया और न ही दुर्योधन जैसे अहंकारी की निन्दा ही की। अपनी वाणी को इस प्रकार काबू में रखने वाले उत्तम पुरुष को गोपाल क्यों नहीं कहा जाएगा ?
आध्यात्मिक दृष्टि से गोपाल का और भी अर्थ बताया गया है :" परापवादशस्येभ्यो, गाँ चरंती निवारय ।"