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________________ • [ २९५] आनन्द प्रवचन : भाग १ का भी एक अत्यन्त मर्मस्पर्शी उदाहरण है जो इस कहावत को शब्दश: चरितार्थ करता है। बालक नामदेव जब एक दिन कों बाहर से धोती खून से लतपथ देखकर माँ बड़ी चकित हुई और जल्दी से बोली "बेटा! तेरी धोती में यह खून कैसे लग रहा है ?" "माँ, मैंने कुल्हाडी से पैर छीलकर देखा था।" तू एक दिन महान साधु बनेगा ! घर पर आया तो उसकी घबराहट और परेशानी के साथ गाँ बोली - "अरे नामू! तू क्या ऐसा घाव पक जाय और कहीं तूने ऐसा क्यों किया ? क्यों मूर्ख है जो कुल्हाड़ी से अपना ही पैर छील बैठा ? सड़ जाय तो पैर कटवाने की ही नौबत आ जाये अपने पैर चोट लगाई ?" "माँ, उस दिन तूने मुझसे पलान के पेड़ की छाल उतरवाकर मँगवाई थी न? आज मैंने सोचा कि अपने पैर की भी छाल उतार कर देखूं। पलास के पेड़ की छाल उतारने से उसे कैसा लगा होगा, यह जानने के लिए ही मैंने अपने पैर की चमडी छीली थी।" नन्हें बालक नामदेव की माता पुत्र की बात सुनकर रो पड़ी और बोली "बेटा नामू! मालूम होता है कि तू एक दिन महान साधू बनेगा। वास्तव में ही अन्य जीवों के समान वृक्षों में भी जान है तथा चोट लगने पर जैसे हमें दुख होता है वैसे ही उन्हें भी होता है।" यही बालक नामदेव बड़े होने पर संत नामदेव के नाम से प्रसिध्द हुए। सभी महापुरूषों का बचपन इसी प्रकार सुलक्षणों से युक्त होता है। अनेक बार तो गर्भावस्था में ही सन्तान के दे जाते हैं। आगे जाकर माता-पिता की घात चाहने चेलणा के गर्भ में आया तो उन्हें अपने गति महाराजा खाने की इच्छा हुई थी। सुलक्षण या कुलक्षण दिखाई वाला कोणिक जब महारानी श्रेणिक के कलेजे का माँस कहने का अभिप्राय यही है कि सन्तान के गुण उसकी प्रारम्भिक अवस्था में ही दिखाई दे जाते हैं। श्रीकृष्ण वासुदेव भी बाल्यावस्था में कितने नटखट और प्रसन्नता की जीवित मूर्ति थे यह आज प्रत्येक मानव जानता हैं। महाकवि सूरदास ने उनकी बाल्यावस्था का नाना प्रकार से चित्रण किया है। एक पद्य, जो कि आप सभी की जबान पर होगा, उसमें अपनी चोटी न बढ़ने की शिकायत माता यशोदा से करते हुए वे किस चतुराई से उससे अधिक मक्खन लेने का प्रयत्न करते हैं -
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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