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________________ • [११९] आनन्द प्रवचन भाग १ भगवान की यह चेतावनी केवल गौतम स्वामी के लिये ही नहीं थी। मनुष्य मात्र के लिए है कि अपने जीवन के अनमोल क्षणों को बर्बाद न करके उन्हें आत्मोत्थान में लगाओ। अन्यथा समय किसी को परवाह न करते हुए चलता जाएगा और हमें ही अन्त में पश्चाताप करना पड़ेगा कि कैसे सुनहरे समय को हमने विकथाओं में बर्बाद कर दिया। पश्चाताप ग्रस्त किसी व्यक्ति के उद्गार भी हैं। इस पहर जो भी मिला फिर वो उस पहर न मिला। यानी जो शाम मिला था वे फिर साहर न मिला। इसलिये भाईयो ! अहंकार, विषय, काव्य, निद्रा एवं विकथा रूप प्रमाद को हमें अपने जीवन से निकालना है। क्योंकि इनके होते हुए हम कभी भी आत्मोत्थान के अपने ध्येय में सफल नहीं हो सकते! संतो का सद्प्रयत्न बंधुओ, संत-महात्माओं की बड़ी कृपा है कि वे अपने समीप आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सत्पथ बताते हैं। उनका उपदेश, उनकी सहज में की हुई बातचीत तथा उनका जीवन ही मानद के लिये प्रेरणाप्रद बन जाता है। महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध संत तुकाराम जी करते है : काय सांगु आता संतांचे उपकार, भग निरंतर जाग कोती ॥ १ ॥ काय द्यावे त्यासी व्हावे उताप्रई ठेवितां हा पाय व थोडा ॥२॥ संतो के उपकार का मैं क्या वर्णन करूँ? मैं मोहरूपी नींद में पड़ा हूँ। कहते हैं सोते सोते तो अनन्त जन्म बीत गए। न जाने कितनी बार जन्म और मरण को प्राप्त हुए हो, पर अब न जाने कितने पुण्यों के संयोग से मानव पर्याय मिली है, बुद्धि और विवेक प्राप्त हुआ है, संत्रो के समागम का अवसर मिल सका है, अगर इतने शुभ संयोग मिलने पर भी तुम नहीं जागे तो फिर कब जागोगे ? हिंदी भाषा के अन्य कवि ने भी कहा है.. 'इस मोह नींद में तुम्हे, सोना न चाहिये ! सोना न चाहिये तुम्हे, सोना न चाहिये! जाना है, तुम्हे दूर, विकट पंथ अवेल्ला, रास्ते में कांटे शूल को बोना न चाहिये। कवि ने मनुष्य को चेतावनी दी है । के इस मोह-रूपी निद्रा में अब तुम्हे सोना नहीं चाहिये। तुम्हारा लक्ष्य स्थान जो कि 'मोक्ष धाम' है बहुत ही दूर है, और पथ बड़ा बीहड़ है। इसे पार करना है। प्रथम तो बड़ा कठीन है और अगर तुमने अपने कुकृत्यों द्वारा अशुभ कर्म रूपी : काँटे और भी इसमें बिखेर दिए तो
SR No.091002
Book TitleAnand Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandrushi
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1994
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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