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धनपुर हँसने लगा । बोला वह :
"हमें सचमुच यमदूत समझते हैं क्या? हम भी आदमी ही हैं । हम सब एक ही राह के राही हैं । यहाँ अधिक देर तक रुकना अच्छा नहीं होगा। लयराम को इसलिए बाँधा था कि वह हमारी राह छोड़कर भाग जाना चाहता था । आप तो हमें छोड़कर भागना नहीं चाहते हैं न ? और ये हैं अपने का-म-रे-ड।"
आहिना कोंवर ने डरते-डरते पूछा, “यह कौन-सा शब्द है ? हे कृष्ण, फिर से तो कहो !"
धनपुर ने समझाया :
" 'का' यानी काम करेंगे : एक साथ, 'म' यानी मरेंगे : एक साथ, 'रे' यानी रेतना : शत्र ओं का गला रेतना और 'ड' यानी डबरा : गड्ढे में डाल देना। अर्थात हम जो काम कर रहे हैं, उसे करेंगे या मरेंगे । जरूरत पड़ने पर दुश्मनों को रेत देंगे, डबरे में दफ़ना देंगे या फिर जिन्दा ही गाड़ देंगे।"
"हैजा हो जाये तुम्हें, वही काल ले जाये तुम्हें ।" कहते हुए आहिना ने छप्पर पर बैठे उल्लू की ओर इशारा किया।
उल्लू को देख धनपुर को हँसी आ गयी । बोला :
"काल यही है न ! इसके उत्पात से कोई नहीं बचा है। सबके भय का कारण यही है। इसलिए धनपुर इसे अभी मार देगा।" कहते हुए उसने उल्लू को अपनी गोली का निशाना बना डाला । फिर बोला, "अब सबके भय का कारण दूर हो गया । अब हम सभी कामरेड हैं । वह कहाँ गयी ?" और उसने ज़ोर से पुकारा : "डिमि!"
डिमि दो चोंगे में चाय लेकर बाहर निकल आयी। उसने आते ही कहा:
"लायी थी दो के लिए। बाघ का खून पीने वाले भी दोनों आ ही गये । क्या तुम लोगों की प्यास वहाँ नहीं बुझी?"
"आदमी की प्यास उससे ही बुझती है क्या ?" धनपुर ने चुटकी ली। डिमि लजा गयी । बोली :
"यदि प्यास लगी है तो पहले तू ही पी। और इसे कौन लेगा? ये ही लें।" इतना कह उसने एक चोंगा धनपुर की ओर और दूसरा आहिना की ओर बढ़ाया। चोंगा ले धनपुर चाय पीने लगा, किन्तु आहिना चुप नहीं रहा। कहने लगा :
"इस पाखण्डी की करतूत देखकर मेरी प्यास यों ही दूर हो गयी, हे कृष्ण ! ओह ! कितना कुधर्मी है यह । जाओ, इसे भिभिराम को दे दो।"
धनपुर ने हंसते हुए कहा :
" 'का' माने काढ़े जैसा गटगट चाय पी, 'म' माने मैंने करा, 'रे' माने रेहाई दिया और 'ड' माने डपटकर भगा देंगे।"
डिमि को गुस्सा आ गया। धनपुर को डपटती हुई बोली वह :
मृत्युंजय / 95