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________________ और एक दिन कामपुर में टेलीफ़ोन और टेलिग्राफ़ के तार काट दिये गये। सांझ घिरे रेल-लाइन की फ़िश-प्लेट भी निकाल दी गयीं। परिणाम यह कि गोला. बारूद से लदी चली आती मालगाड़ी भड़भड़ाकर नीचे गिरी। आग तो लगी ही, पास वाले मिलिटरी कैम्प के जैसे हाथ कट गये । दूसरे दिन उधर के यमुनामुख पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराया गया; दो रेल-पुल ध्वंस किये गये। इन सब कामों में प्रमुख भूमिका धनपुर की थी। कितनी सफ़ाई के साथ अपने हर दायित्व की पूर्ति उसने की, यह देखकर भिभराम ही नहीं, अन्याय कार्यकर्ता लोग भी दंग रह गये। . ___इसके बाद तो जो होता, हआ ही। पुलिस, सी० आई० डी० और मिलिटरी के उत्पात बेहिसाब बढ़ उठे । धनपुर एकदम से गायब हो गया : भूमिगत । ऐसा वेश मिस्त्री का अपना बनाया उसने कि कोई जान ही न सका कि अचानक गया तो कहां। किन्तु सरकारी दमन बहुत अधिक बढ़ उठने के कारण, कामपुर में आन्दोलन इस बीच स्वभावतः कुछ ढीला पड़ आया। अधिकारियों ने आन्दोलन को एकबारगी ही कुचल डालने की नीयत से सिपाहियों के एक बड़े दल-बल के साथ मेजर फ़िन्स को वहां भेजा। इतना क्रूर था यह व्यक्ति कि याद आने पर लोगों के आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। . धनपुर अवसर पाते ही यहाँ से खिसककर रोहा पहुंचा। रोहा : अर्थात् वहाँ का बुनियादी केन्द्र । वहीं उसे पता चला कि बारपूजिया में शान्ति-सेना की एक सभा बुलायी गयी है। और धनपुर अपने उसी छद्मवेश में वहाँ जा पहुंचा। उसके पास शान्ति-सेना का बैज था और था जेब में गोस्वामी जी का एक पत्र । यही दिखाकर उसने केन्द्र में प्रवेश किया। यह पत्र गोस्वामी जी ने उसे भूमिगत होने से पहले यमुनामुख जाने के लिए दिया था। निर्देश उनका यह था कि थाने पर तिरंगा फहराने के बाद तत्काल उसे नष्ट कर दे। यह इसलिए कि प्रमुख कार्य-संचालकों के हाथ की लिखावट पुलिस के हाथ पड़ना निरापद न होता। धनपुर ने तत्काल वैसा न कर कुछ दिन बाद नष्ट कर देना सोचा । कारण केवल यह था कि उस पत्र में कई बड़े भावपूर्ण वाक्य आये थे जिन्हें वह मन में बंठा लेना चाहता था, और था एक राष्ट्रीय गीत जो कण्ठस्थ होने में नहीं आता था। ___ सच तो, पढ़ाई आदि में उसकी रुचि बचपन से ही न थी। पाठ्य पुस्तक की तो कोई बात दिमाग़ में घुसती ही न थी। क्लास-रूम में मास्टर जब गणित समझाते तब उसका मन और-और ही कहीं पेंगें भरा करता। एक दिन तो आँखें मूंदे हुए एक मिकिर षोडशी के बारे में ही सपनाने लगा था। उधर पहाड़ की तलहटी में बसा हुआ था एक छोटा-सा गांव रंगखाड्., उसके पास से जाती पगडण्डी, आगे आता कामपुर । मिकिर षोडशी उसी गांव की थी। मृत्युंजय / 3
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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