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________________ आते रात हो जायेगी। भोजन के उपरान्त कल को ही चल दें ? कैसा रहेगा ? राजा मायङ सोणमाटि, बरगाँव आदि में तो पहरा लगा है। इसलिए सीधे रास्ते जाना नहीं बनेगा। तुम्हारे साथ दधि को कर दूंगा। वह बुद्धिमान है । मधु को सब रास्ते मालूम हैं। उसके लिए किसी प्रकार की चिन्ता नही है।" भिभिराम को नींद घेर रही थी। जंभाई लेते हुए बोला : "और कोई बात ? सामान का इन्तज़ाम तो हो गया होगा ?" "चावल निकाल रखा है। हाँडी-करछुल घर से ले लेंगे । थाली-कटोरी का काम पत्तों से लिया जायेगा। कुछ और आवश्यक लगा तो कमरकुचि में देख लेंगे। ओ, तुम्हारी आँख झपक रही है। जाओ सोओ।" भिभिराम कम्बल ओढ़ते हुए बोला : "यहाँ सरकारी भेदिये तो नहीं आते न ?" "नहीं । उनकी खबर पहले ही मिल जाती है। अपने आदमी भी बरावर लगे रहते हैं।" ___ गोसाईं कुछ देर गुमसुम बैठे रहे। फिर जैसे अपने को स्वयं उठाते हुए धीरेधोरे चले गये। मृत्युंजय / 41
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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