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________________ "हे भगवान्, तब क्या मैं साथ में अयोग्य व्यक्ति लाया हूँ ? धनपुर बड़ा दुर्दम है, निर्भय । बिल्कुल जैसे सिंह हो।" गोसाईं ने जानना चाहा कि फ़िश प्लेट खोलने में उसे कितना समय लगेगा। भिभिराम ने बताया कि पन्द्रह मिनट तो लग ही जायेंगे। अधिक भी लग सकते हैं। गोसाई सोचते हुए बोले : "बीसएक मिनट में पूरा हो जाये काम, तब लौटकर आ सकते हैं । नहीं तो गश्त लगानेवालों के हाथों पकड़ लिये जाने की सम्भावना है।" ठीक है, उसे जल्दी से जल्दी काम निबटाने से लिए कहना होगा।" थोड़ा ठहरकर भिभिराम ने पूछा, "आपके यहाँ से कौन-कौन जायेगा ?" "जिन्हें आज यहाँ देखा, वे ही सब।" "सब विश्वसनीय हैं ?" "हाँ, आहिना कोंवर थोड़ा आलसी है, बस । सारा जीवन अफ़ीम खाने से ऐसा हो गया। अब ठीक हो आया है।" भिभिराम ने आशंका प्रकट की : "कहीं गल ग्रह न बन जाये।" "नहीं। वह तमाम रास्तों से परिचित है।" गोसाई ने कहा : "हमारे लोगों में दो ही बुरी आदतें हैं। बातें बहत करते हैं; और जाति-पांति को लेकर भी उलझ पड़ते हैं । इस अवसर पर ध्यान रखना होगा।" “इतनी जल्दी जानेवाली आदतें नहीं ये गोसाईजी।" भिभिराम बोला। "किन्तु परिस्थिति स्वयं इन्हें छोड़ने के लिए बाध्य करेगी। अच्छा भाई, हम दोनों अलग-अलग दलों में रहेंगे । एक पकड़ा गया तो दूसरा बचा रहेगा।" भिभिराम किचित् चिन्तित हो आया : "ठीक है, इस नैया के न डूबने तक खेऊँगा ही।" गोसाईजी हंसकर बोले : "तुम बुद्धिमान हो भाई । विप्लवी इसी प्रकार बनते हैं । गर्भ से सीखकर कोई नहीं आता।" भिभिराम ने कहा : “जी हाँ, अपना काम करते हुए छह महीने भी यदि हम टिक गये तब अच्छे कार्यकर्ताओं को कमी नहीं रहेगी।" "किसी भी दशा में अपनी शक्ति को संघटित करना हमारे लिए बहुत आवज्यक है । अस्थि में छह व्यक्तियों को फांसी की सजा मिली है। सिमुर में घरों में से लोगों को खींच-खींचकर उन पर अकथ अत्याचार किये गये हैं। बलिया, मृत्युंजय | 39
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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