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________________ __ "जेल में रहना बड़ा अखरा । आदमी ठसाठस भरे हुए थे । मुझे जनाना वार्ड में रखा गया था। वहाँ पानी भी नहीं था। खाने के लिए बस मॉड-भात । उससे पेट भी भरता है ? भुइयाँ जैसे दो-चार लोगों को जरूर अच्छी कोठरी में रखा गया हैं। उन्हें खाने को भी ज़रा ठीक-ठाक मिलता है। हम लोगों को तो लूंस-ठूसकर एक ही कोठे में घुसा दिया गया था । न जाने कहाँ-कहाँ से वालण्टियर गिरफ्तार करके लाये गये है। दिन भर में तीन-चार बार पकड़कर लायें जाते हैं। जेल के आदमियों की तो हुई सो हुई, पुलिस की नींद भी हराम हो गयी है । बाप रे, वहाँ तो बस, हर समय कुहराम मचा रहता है। एक बार महात्मा गांधी की जय, एक बार इसकी जय, फिर दूसरी बार उसकी जय । ऐसा लगता ही नहीं कि वहाँ कोई जेल का साहब भी है। हाथों में लाठी लिये सिपाहियों को देखने पर ही अन्दाज़ होता है कि वे लोग भी मौजूद हैं।" "परेड के लिए जाते समय डर नहीं लगा?" टिको ने पूछा। चाय की चुस्की लेती डिमि धीरे से बोली: "डर क्या लगता ! लाज जरूर लग रही थी। बीच-बीच में हंसी भी आ रही थी। भला झूठ बोलना किसे अच्छा लगता है ? पर वहाँ तो झूठ ही बोली। परेड के बाद भुइयाँ मिल गया। वह बुड्ढा कहने लगा, 'अरी डिमि, तू देखने में ही भोली है, पर काम तो बड़ा कर दिया।' और फिर बातों-बातों में चुपके से ही उसने शइकीया वकील को खबर देने के लिए भी कह दिया था। जेल का जमादार भी सुन रहा था लेकिन वह अनसुनी करके वहाँ से ख द ही हट गया था। स्वराज्य की महिमा कितनी बड़ी है यह मेरी समझ में तभी आ गयी। सच, जेल से बाहर आने को जी नहीं करता था ।" टिको जल्दी-जल्दी खाने लगा : बाहर धूप चढ़ आयी थी। उसका मन छटपटा रहा था। बोला : "तुमने सचमुच बड़ा काम किया है, डिमि । लेकिन आन्दोलन करनेवालों की संख्या घटती जा रही है। रूपनारायण के गिरफ्तार कर लिये जाने पर तो सर्वनाश ही हो जायेगा।" गोसाइन पान में चूना लगाती हुई बोली : "मुझे भी लग रहा है कि वह भी जल्द ही पकड़ लिया जायेगा।" "मेरे मन में भी कुछ ऐसा ही लग रहा है । पता नहीं, मेरा क्या होता है ? कल रात ही पकड़ लिया गया होता अगर भुइयानी ने अपनी खाट के नीचे न छिपा दिया होता "बच्चे को देखना था सो देख लिया। वह जैसे आया, वैसे ही दुनिया से चला भी गया। और रतनी-वह तो मेरी ओर देखकर रो भी न सकी। भला रोती कैसे ? पापियों ने रोने के लिए भी तो समय नहीं दिया।" "अब तुम जल्दी तैयार हो जाओ, डिमि । रुकने से इस पर विपत्ति आ 260 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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