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सोलह
अनुपमा की आँखें झपकी ही थीं कि गोसाइन ने आकर जगा दिया : "भाभी, भाभी ! विवाहवाले घर में कुछ हो गया है। तुमने सुना कि
नहीं ?"
अनुपमा उठ बैठी। गोसाइन का चेहरा देखते ही वह समझ गयी कि कुछ गड़बड़ ज़रूर हुई है । उसने पूछा :
"क्या हुआ ?"
"होगा क्या, रूपनारायण को पकड़ न पाने के कारण दारोगा शइकीया ने वकील साहब को ही गिरफ्तार कर लिया है। उस घर में कुहराम मचा हुआ है। वहाँ से तुम्हारे आने के बाद घर की कुर्की तक हो गयी । और तो और, कन्या का कमरा भी नहीं छूटा । दैयन अभिशाप बन गया।"
अनुपमा कुछ बोली नहीं। रूपनारायण के पकड़े न जाने की बात सुनकर उसे तसल्ली हुई । वकील की गिरफ्तारी के समाचार से वह तनिक भी विचलित न हुई । गिरफ्तारी, हत्या, घायल होना—ये सब तो आजकल आम बातें हो गयी हैं। बल्कि इस तरह की घटना जिस किसी दिन नहीं होती, उस दिन उसे दुख होता है। तब भी उसने पूछा :
"घर के और सब लोग कहाँ हैं ? किसी ने कोई इन्तजाम किया ?" "शइकीयानी जिला-अधिकारी के पास गयी हैं।"
"हाँ, तब तो कुछ हो सकेगा। जिलाधिकारी शायद शइकीयानी के पिता से अच्छी तरह परिचित हैं।" अनुपमा बिछावन से उतर आयी। हाथों में टूथब्रश और पेस्ट ले उसने पूछा :
"तुमने मुँह धो लिया न ?"
गोसाइन एकाएक उदास हो गयी थीं। उनके चेहरे पर दृष्टि जमाती हुई अनुपमा ने हँसकर पूछा :
"क्या बात है ? फिर कोई भगोड़ा आया है क्या ?" "हाँ।" "कौन?" “टिको । स्वयं भुइयानी पहुंचा गयी है। क्या करूँ, कुछ सोच ही नहीं पा