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________________ स्वयं बहुरूपियापन जैसा लग रहा था। गुवाहाटी में एक बार एक फैंसी फ़ुटबाल मैच हुआ था । वहाँ शहर के एक किशोर खिलाड़ी ने महिला का वेश धारणकर मैच में भाग लिया था । उसने भी अपना नाम पटेश्वरी ही रखा था । मिसेज पटेश्वरी थी सैंण्टर फ़ारवर्ड । एक बार बैंक पास देते समय गिर जाने पर जब उसके सिर के बाल खुलकर गिर पड़े तो बेचारे को देखकर दर्शकों ने खूब फब्तियाँ कसी थीं । आज कहीं रूपनारायण की भी वैसी दशा न हो ! उसके गाँव में भी पटेश्वरी नामक एक औरत थी । सबकी दीदी थी वह । देखने-सुनने में बिलकुल मर्द जैसी । दीदी का काम ही था विवाह के योग्य लड़केलड़कियों की शादी की बात तय करना-कराना । अनुपमा के लिए भी वर उसी ने खोजा था । विवाह मण्डप में वह एक वार आनन्द-विभोर हो नाच भी उठी थी । उसने कहा था, 'रूप-गुण-सम्पन्न ऐसी जोड़ी बड़ी मुश्किल से ही मिलती है ।' रूपनारायण के मन में कुछ-कुछ हास्य रस का संचार हो आया । थियेटर में महिला की भूमिका अदा करने का तो उसका अभ्यास रहा ही है । आज भी अभिनय करके ही उसने पुलिस से छुटकारा पाने की सोची है। स्त्रियों की भूमिका निबाहना हँसी-खेल नहीं । 'हरमोहन' में विष्णु भगवान् का मोहिनी रूप धारण कर शिवजी को मोहित करने का प्रसंग भी उसे याद हो आया । पर इस बार तो वह पुलिस की आँख में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है ! आइने में अपना प्रतिबिम्ब देख रूपनारायण ने अपने को एक नयी युवती के रूप में पाया । वह अपने को ही अनजान जैसा लगा । सामने अनुपमा खड़ी थी । उससे आँखें मिलते ही वह झेंप गया। उसकी सारी देह रोमांचित हो उठी। अगर आरती भी उसे इसी पोशाक में देख लेती तो पता नहीं वह क्या सोचती ? रूपनारायण ने अनुपमा द्वारा लाये गये ब्लाउज़ और सैण्डल पहन लिये । ऊपर से जनाना शाल भी ओढ़ लिया । फिर घूंघट काढ़ते हुए उसने शइकीया से कहा : "आप जाकर गाड़ी निकालिये और हाँ, उसे अन्दर तक लेते आइये ।" शइकीया निकल गये। अभी सुबह नहीं हुई थी । रूपनारायण अनुपमा से बोला : "1 'दैन' देनेवाली सब औरतों को जगा दो जिससे पुलिस कुछ भाँप न सके । और तुम दो-चार जनी मिलकर मुझे गाड़ी तक ले जाकर उसमें बिठा देना ।" "सभी जाग गयी हैं। हाँ, मैं सोच रही थी कि तुम्हारे साथ भी कोई और जाये तो अच्छा होगा । लगता है, स्वयं शइकीयानी ही जायें तो ठीक रहेगा ।" "हाँ, बहुत ही अच्छा रहेगा ।" इस बीच रूपनारायण ने एक अँगोछा मँगवा लिया। उसमें उसने अपनी छोटी पिस्तौल लपेट ली । और फिर अनुपमा से कहा : मृत्युंजय | 251
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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