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________________ दीख लीआटि के सुरक्षित वन के पास ही नेताओं की कोई सभा हो रही है। बन्दुके वहीं छिपानी पड़ेंगी। राइडङीया के रास्ते पर ही वसुमती अस्त्र-भण्डार है। वहाँ से अपना काम निपटाकर उसे आगे जाना था। आगे सोनाई को भी पार करना है। जयराम से उसकी भेंट नहीं हो पायी। इसलिए टिको की बात सुनकर उसने तुरन्त कहा : "उससे भेंट कहाँ हुई ? वह तो लौट भी चुका होगा?" "हाँ, जब काम पूरा हो गया तो यहाँ रुकने की ज़रूरत ही क्या थी ? वैसे शइकीया और लयराम ने मायङ को खंडहर बना दिया है।" टिको की खाँसी उभर आयी और वह पास ही के एक पेड़ के तने से टिक गया। खाँसी रुकने पर टिकी ने आगे कहा : __ "माफ़ करना, मैं तुम्हें जल्दी पहचान न सका। गोसाईजी और धनपुर तो रहे नहीं। मैं उनके साथ जा न सका। लेकिन इधर मैंने भी दो कमीनों को मार गिराया है।" "किन्हें ? शइकीया और लयराम को?" "वे साले तो जाल फांदकर निकल भागे। लेकिन दो छोटी मछलियाँ जाल में घुटकर मर गयीं..." ___ अचानक थोड़ी ही दूर पर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज़ आयी । टिकौ सर्तक हो गया। बोला : "शायद मिलिटरी आ गयी। चलो, भाग चलते हैं।" । तभी सींगा बज उठा। टिको ने रूपनारायण को एक ओर खींचते हुए कहा : "तुम बरठाकुर का घर खोज रहे थे न । वह यहाँ हैं नहीं। अब तक वह वहीं था, जहाँ हत्या की गयी थी। ये पुलिस वाले साले हमें चारों ओर से घेर लेंगे। हमें पहले चाकोला घाट को पार करना चाहिए । तुम मेरे पीछे-पीछे चले आओ..." उसने कुदाल और दाव को पास की ही एक झाड़ी में फेंक दिया और भुनभुनाता हुआ फिर बोला : ___ "मैं घर आया था, खाना खाने के लिए. लेकिन उन पापियों ने इतना समय भी नहीं दिया कि कुछ खा-पी सकूँ।" रूपनारायण उसके साथ चलने को तैयार हो गया। लकिन चलते-चलते उसने पूछा : "मैं अपने कई साथियों को पीछे छोड़ आया हूँ। वे सब चमुवा गाँव में हैं। उनका क्या होगा?" टिको ने मुसकराकर कहा : "उनके साथ उनकी बन्दूकें हैं न।" मृत्युंजय | 211
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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