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________________ तक आया जहाँ दधि उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वहां से दोनों ने एक बार फिर एक अज्ञात गन्तव्य की यात्रा आरम्भ की। धनपुर गोसाईंजी के बारे में सोचता रहा : मुझसे पहले ही वे संसार छोड़ गये ! उसे इसमें दुःखी होने जैसी कोई बात नहीं लगी। दुःखी होने या बुरा लगने जैसी कोई बात थी भी नहीं । ऐसी ही मौत तो वह चाहते भी थे। धनपुर की छाती की धड़कन और अधिक बढ़ गयी। अचानक गारोगांव में कुहराम-सा मच गया। धनपुर को लगा जैसे वहां के लोग शोर-गुल मचा रहे हैं, उनमें भाग-दौड़ मची हो । शायद अपने को बचाने के लिए चीख-पुकार रहे हों । उसका ध्यान कुछ देर के लिए उधर गया अवश्य, पर 'जो होता है, हो' सोचता हुआ वह उधर से उदास हो उठा। वह फिर इस चिन्ता में पड़ गया कि अभी तक डिमि क्यों नहीं आयी। थोड़ी देर में ही जयराम लौट आया। आते ही उसने बताया : "धनपुर भाई, गारोगाँव को चारों ओर से पुलिस ने घेर लिया है । डिमि के घर का घेराव तो उसने बहुत पहले से ही कर रखा था। बाहर ही बाहर पता चला है कि डिमि अभी तक लौटी ही नहीं है । वह कहीं रास्ते में ही रुक गयी है । शायद सुबह होने के पहले नहीं लौटे।" धनपुर को विश्वास नहीं हुआ। उसने कराहते हुए कहा, "आने को कहा था उसने, इसलिए वह आयेगी अवश्य।" सहसा तभी बालू पर किसी के चलने की आहट हुई। जयराम ने कान लगा. कर आवाज़ सुनने की कोशिश की। एक नहीं, कई व्यक्तियों के पदचाप सुनाई पड़ रहे थे। जयराम को लगा, शायद पुलिस होगी। तभी बलबहादुर की आवाज़ कानों में पड़ी--'इधर कहाँ जायेंगे सरकार ? बीहड़-ही-बीहड़ है। इधर तो दिन में भी आदमी नहीं जा पातें।' ___-ठीक । पुलिस की ही आहट तो है । बलबहादुर का भी यही संकेत था। यह सोच जयराम बोला : "धनपुर, पुलिस आ चुकी है।" __ "तुम यहाँ से भाग निकलो। देर मत करो । यहाँ कहीं नहीं रुकना, सीधे मायङ की ओर चले जाना।" जयराम ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप जंगल में खिसक गया। धनपुर बालू पर चलने की आहट को ध्यान लगाकर सुनने लगा । उसे एक बार जी भरकर हँसने की इच्छा हुई । वह समझ गया. ये यमदूत के क़दमों की ही आवाजें हैं। ये ठीक समय पर आये हैं। वे टॉर्च जलाकर जंगल की ओर देख रहे थे । उसकी रोशनी एक बार मृत्युंजय | 191
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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