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________________ "गोसाईंजी, जल्दी आइये । मुरदों को लाइन से अलग कर दें। समय बिलकुल नहीं है । गाड़ी आने ही वाली है।" ____ गोसाईं नीचे उतर आये । टॉर्च जलाकर दोनों ने ट्राली को देखा । वह खाई में जा गिरी थी। पहले मारे गये दोनों पहरेदारों के पास ही पड़ी थी वह । फिर वे मृतकों के पास आये, और एक-एक कर दोनों शवों को खींचकर उसी खाई में फेंक दिया। दोनों बन्दूकें और गोलियां वे शवों को फेंकने के पहले ही अपने अधिकार में ले चुके थे । अन्त में ड्राइवर की देह का निरीक्षण किया। दोनों को निश्चय हो गया कि वह मछित है। उसमें धड़कन अब भी शेष थी। रूपनारायण ने उसे अपने कन्धे पर लटका लिया । वजनी न होने के कारण उसे अधिक श्रम महसूस नहीं हुआ। उसे वह उसी चट्टान के पास डाल आया, जहाँ वह पहले खड़ा था। तब तक गोसाईं रेलवे लाइन पर ही खड़े रहे। वापस आकर रूपनारायण बोला : __ "काम पूरा हो गया। चलिये, जल्दी भाग चलिये । वह लाइट देख रहे हैं न?" लेकिन यह क्या ? गोसाईं के मुंह में जैसे आवाज ही नहीं थी। रूपनारायण ने दोनों बन्दूकें और गोलियाँ अपनी पीठ पर लाद लीं। फिर टॉर्च जला उसने गोसाईं के चेहरे की ओर देखा । उसे लगा मानो उनका मुंह नहीं बल्कि एक मूर्ति का पीला-पीला शिरोभाग हो। __उधर रेलगाड़ी आ रही थी। रूपनारायण चिन्तित हो उठा। नाव के डूबने की अधिक सम्भावना होती है दो बार ही-उस पर चढ़ते समय या उससे उतरते समय । पता नहीं, इस समय इन्हें क्या हो गया ? वज्राघात पाये व्यक्ति की तरह खड़े हैं : एकदम जड़, स्थाणु । रूपनारायण की आँखों में नाच उठा एक सर्वथा विषण्ण चेहरा । उसने उन्हें ज़ोर से झकझोरते हुए कहा, "सुनते नहीं हैं क्या? चलिये न !" गोसाईंजी बड़ी कठिनाई से सिर्फ इतना ही कह पाये, "मुझे सहारा दे वहाँ तक ले चलो रूप, और मेरे हाथ में वह रस्सी थमा दो। मेरी आवाज़ भी एकदम बैठ गयी है।" गोसाई को जैसे-तैसे रूपनारायण रस्सी के पास लिवा लाया। फिर वह तेजी से ऊपर चढ़ बन्दूक को छितवन के पास रखकर वापस वहीं आ गया। बोला : __ "चलिये, धीरे-धीरे ऊपर चढ़ते चलिये।" रूपनारायण के कन्धे को थामे गोसाईं रस्सी पकड़कर किसी प्रकार ऊपर चढ आये और वहीं बैठ गये। ___ रूपनारायण चिन्ता में पड़ गया। आखिर इन्हें हो क्या गया ? उसने गोसाई की नब्ज़ देखी। उसकी गति बड़ी तेज़ हो गयी थी। 172 / मृत्युंजय
SR No.090552
Book TitleMrutyunjaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBirendrakumar Bhattacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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