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"इसलिए कि पिछले ही दिन इन लोगों ने बारपूजिया में मीटिंग की थी। शान्ति सेना भी थी वहाँ। तिलक डेका गांव के बाहर रास्ते पर पहरा दे रहा था । मृत्यु-वाहिनी की बैठक हुई और किसे कहाँ क्या करना है यही निश्चय किया जा रहा था। सी. आई. डी. ने भनक पाकर रोहा थाने के ओ. सी. शइकीया को खवर दी। शइकीया उसी दम अपने लाव-लश्कर सहित आ धमका।"
"ऐसा?" माणिक के स्वर में घबराहट की झलक थी। धनपुर कहता गया :
"रात घिर चली थी जब बारपूजिया वाली सड़क पार करके वे लोग गाँव के निकट पहुँचे । तिलक डेका एक बड़े पेड़ की ओट खड़ा था। बढ़ते आते बूटों की आवाज़ कान में पड़ी। सावधान हो वह कि तीन- तीन टॉों का प्रकाश उसके मुंह पर था। तत्क्षण सिंगा फंककर गांव वालों को सचेत करने के लिए उसने हाथ ऊपर किया। कैप्टेन ने कड़ककर उसे रोका। मगर तिलक की पोर-पोर में आग की चिनगियाँ चिनक उठी थीं। मौत सामने थी, फिर भी सिंगा गूंजकर रहा।" __ कोई देखता उस समय तो लक्ष्य करता कि भिभिराम की छाती गर्व से तन उठी थी। सचमुच कितनी तत्परता के साथ तिलक डेका ने कर्तव्य का पालन किया!
धनपुर ने आगे बताया :
"नेता और कार्यकर्तागण संकेत पाकर हवा हो गये; कुछ जहाँ-तहाँ जंगलझाड़ियों में जा छिपे । किन्तु इससे पहले ही तिलक डेका की जवान उमंगों-भरी देह नीचे लुढ़क चुकी थी।"
वीड़ी जलाकर एक लम्बा कश धनपुर ने खींचा और धुएँ को छूटकर अपनी गँठीली उँगलियों को देखता हुआ बोला :
"तिलक के बाद एक और युवक को भी गोली से उड़ाया गया। उसके बाद मिलिटरी पुलिस और सी. आई. डी. के जवान गाँव में घुस पड़े। एक वॉलण्टियर तक कहीं न दिखा। शिकार हाथ से निकल जाने पर शइकीया का गुस्सा आसमान को छू उठा। फिर तो जो मिला उसे मार-मारकर पुलिस थाने ले गयी। थाना रोहा का ! लोहे की छड़ें लाल कर-करके उनसे जहाँ-तहां दाग़ा गया कि कोई तो कुछ बात उगल दे !"
भिभिराम की दृष्टि धनपुर की ओर घूमी। धनपुर कहीं खोया हुआ सुनाता जा रहा था :
__ "जिन्हें पर-पुरुष ने कभी छुआ न था उन स्त्रियों को खुले रास्तों ऐसी निर्लज्जता के साथ खींचा-घसीटा गया कि कपड़े फट गये और नंगी देह छिलछिलकर रक्त बहने लगा। बच्चों को माँ की गोद से छीनकर धरती पर पटका गया और रोने पर मुंह में कपड़ा ढूंस दिया गया। पुरुषों को न केवल निर्दय
मृत्युंजय /9