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________________ ලගටවලගට. azgRzwටයටවත් इति नवग्रह समाप्ता: देवयंत्र शं वं व्ह : जल भू बीजै मिटांत स्वरैः वतं बाहो द्विषद दलों भोज पत्रे षुसकलं नभः ॥ २७७॥ सांत संपुटमालेख्य हंसः वलया कतं अंब पुर पुटोपेतं सद्भूज चंदनादिभिः ॥२७८॥ नाम को झं वं व्हः जल बीज प भू (पृथ्वी) बीज (क्षि) टांत (ठ) और सब स्वरों से वेष्टित करके उसके बाहर दल का कमल बनाकर सब में नभः (ह) लिखे।। फिर सांत (ह) के संपुट को लिखकर इवीं हंसः को गोलाकार में लिखकर बाहर उसके अंबे पुर (जलमंडल) का संपुट बनाए इसको श्रेष्ठ भोजपत्र पर चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों से लिखे। सियते वाच्यते देवं यंत्रं टोन मुदा वहं, तस्य स्यान्मंगलं लक्ष्मी: शांति स्यं शिवायसः ॥२७९ ॥ इस देव यंत्र का जो पूजन करता है तथा धारण करता है और प्रसन्न होता है उसका मंगल होकर उसको लक्ष्मी की प्रप्ति होती है तथा शांति होकर उसका कल्याण होता है। सित्यकेनै तदा जलपूर्णघटे क्षिपेत्, दहोस्यो पशम कुर्यात ग्रह पीडां निवारयेत् ॥ २८०॥ इस यंत्र को रस्सी से बने हुए छीके में रखकर जल से भरे हुए घड़े में रखे तो यह यंत्र शरीर के दाह को शांत करके ग्रह की पीड़ा को दूर करता है। सर्व शांतिक सत्सरखास्यस्य धारणं, यंत्रं साम्यर्चनं भक्तया भवेन्मारण वारणं ॥ २८१॥ सर्व शांति करने वाले तथा श्रेष्ठ सुख को देने वाले इस यंत्र का भक्ति पूर्वक पूजन करने से मारण कर्म भी रुक जाता है। ॐ शं वं व्ह: पक्षि इची हंसः देवदत्त स्य शांति कुरु कुरु द्वयं स्वाहे त्या यम स्याना मंत्रः ॥ २८२ ।। ॐ झं वं व्हः पक्षि इवीं हंसः देवदत्तस्य शांति कुरु दोबार बोलकर अर्थात् कुरु कुरु कहकर फिर स्वाहा बोलने से इसके पूजन करने का मंत्र है। ॐ शं वं व्हः पक्षि इवीं हंस देवदत्त स्य शांति कुरु कुरु स्वाहा CHSDISCISISTRICKSTOTOS९५९ 1510TSTOISSISTRIDIOSOTEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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