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________________ 959695952 विधानुशासन YOPSPS ॐ उन्मत्त कारिणि पिशाची पिछे ठः ठः ॥ तालं रैबीजयोश्चूर्णा धुणा चूर्ण मूदृन्टर, अनेन मंत्रितं दद्यात्स पिशाची भवेत् ध्रुवं ॥ २५ ॥ इस मंत्र से हड़ताल और रै बीज के चूर्ण को शत्रु के सिर पर रख दे तो वह पिशाच निश्चय पूर्वक हो जाता है। प्रत्यानयन मे तस्य प्राहु विद्या विशारदा, क्षीरं शर्करां युक्तं भक्षे पाने च योजितं ॥ २६ ॥ मंत्र विद्या के पंडितो ने शक्कर मिले हुए दूध के खाने और पीने को इन कृत्रिम रोगों को दूर करने का उपाय बताया है । विष मुष्टि कनक मूलं रालाक्षत वारिणा, ततः पिष्टं तद्रसभावित पत्रं पिशाचयत्युदरं मध्यगत ॥ २७ ॥ विषमुष्टिक (कुचला ) कनक मूल (धतूरे की जड़) और राल के और अक्षत (चावल) के पानी से तथा उसके पत्तो के रस की भावना देकर खिलाने से यह पेट में जाते ही मनुष्य को पिशाच जैसा बना देता है। शिरिव दक्ष कपोतानां तालोन्मत्त सकृद्रसः, मूर्द्धन्यप्पित मुन्मांद दद्यान्मोक्षस्तु मुंडितः ॥ २८ ॥ (शिखिदक्ष) मुरगा कपोतानां (कबूतर) की बींट ताल (हड़ताल) उन्मत्त (धतूरा) को सर पर रखने से उन्माद हो जाता है तथा मुंडी (गोरख मुंडी) को देने से पैदा हुए उन्माद से मोक्ष (छूटकारा) हो जाता है। करंजोन्मत्त बीजाणा धुण चूर्ण गुडान्वितं रजः, कलेवरे दत्तं द्विषामुन्याद मावहेत् ॥ २९ ॥ करंज उन्मत्त (धतूरा) के बीज धुण का चूर्ण और गुड़ को कलेवर (मृत शरीर) की रज में देने से शत्रु को उन्माद हो जाता है। सर्पिषः शत पुष्पायां पतंग पयसोपि च, पानं स्यात् कारिकस्यै तस्योन्मादस्य प्रशांतये || 30 || सर्पि (घृत) शत पुष्पा (सोया) पतंग (जल मधुक वृक्ष) और दूध को पिलाने से उस उन्माद की शांति होती है। 25959595955 ७७४ 959595 i
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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